शेषनाग और धरती

कुछ बेवकूफ बच्चे, अपने धर्म का मजाक बना रहे हैं। बिना सत्यता जाने, बिना वेद-पुराण का अर्थ समझे, आप बकवास करोंगे, तो लात खाओगे। 
ऋषि-मुनियों की सभ्यता कितनी उन्नत रही होगी, बिना अंतरिक्ष गये, बिना टेलिस्कोप के, इतनी गहन जानकारी वेद-पुराण के जरिए उन्होंने हमें दी। आश्चर्य होता है।
🙏🙏🙏कृप्या पहले सत्यता की जांच करें, फिर बात करें। अन्यथा कानून आपके लिए है, तो हमारे लिए भी है। हिंदू भावनाओं को आहत करने का केस दर्ज करवाया जा सकता है।🙏🙏🙏

"वैज्ञानिक तर्क के अनुसार, हमारी पृथ्वी जिस सौरमंडल में स्थित है, वह सौरमंडल अनेकों तारों सहित आकाशगंगा नामक मंदाकिनी में स्थित है। इस आकाशगंगा नामक मंदाकिनी का आकार सर्पिलाकार (सर्प+अकार) है। हम सभी इस मंदाकिनी के शिकारी भुजा अर्थात मुख (ओरायन-सिग्रस) के पास स्थित है। इस प्रकार वैज्ञानिक तर्क में प्रत्यक्ष रूप से शेषनाग जैसे सर्प की व्याख्या नहीं है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वह मंदाकिनी के सर्प होने और उसके मुख के पास पृथ्वी के होने से भी इनकार नहीं कर रहे।

हमारे धार्मिक ग्रंथों के रचयिता अंतरिक्ष में जाने में सक्षम थे या नहीं, ये तो नहीं पता लेकिन उनकी की व्याख्याओं से इस बात का प्रमाण मिलता है कि वो अंतरिक्ष, ब्रह्मांड और गृह-नक्षत्र को भली-भांति समझने में सक्षम थे। मंदाकिनी से बाहर जाकर, आकाशगंगा और पृथ्वी के स्थिति और अकार को स्पष्ट रुप से देखने में सक्षम थे। तभी उन्हें सर्प के आकार रुपी मंदाकिनी में, पृथ्वी सरसों के दाने की भाँति प्रतीत हुई होगी। आकार को लेकर अगर बात की जाये, तो उनकी यह व्याख्या वैज्ञानिक व्याख्या के साथ बिल्कुल सटीक बैठती है क्योंकि मंदाकिनी और पृथ्वी का आकार एक सर्प और सरसों के दाने जितना ही है।"

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