जातिव्यवस्था

जातिव्यवस्था 

प्रश्न 👉 जातिव्यवस्था इन्सान के द्वारा बनाई गयी हे या ईश्वर के द्वारा ?

उत्तर 👉 निश्चित रूप से ईश्वर द्वारा बनाई गयी है !

प्रश्न 👉 क्या इसे तर्क के द्वारा समझा सकते हे ?

उत्तर 👉 हां क्यों नहीं बिलकुल समझा सकता हूँ !

प्रश्नकर्ता 👉 लेकिन न तो मुझे संस्कृत का ज्ञान हे ना ही में शास्त्रों का ज्ञाता हु, हा अंग्रेजी से मैंने ऍम.ए .किया है !

उत्तर 👉 कोई बात नहीं संस्कृत ,या शास्त्रों का ज्ञान नहीं होगा चलेगा किन्तु कॉमनसेंस होना जरुरी है!

प्रश्नकर्ता 👉 जी वो तो है !

उत्तर 👉 अब हम शुरुआत करते हे ,कृपया बताए कि इस पृथ्वी पर कितने प्रकार के जीव रहते है?

प्रश्नकर्ता 👉 मनुष्य ,पशु ,पक्षी जलचर ,पेड़, पोधे इत्यादि !

उत्तर 👉 बिलकुल सही अब एक बात बताओ पशु कहने से सभी पशु शेर हो गए क्या........ ,पक्षी कहने से सभी पक्षी तोता हो गए क्या... ,जलचर कहने से सभी शार्क मछली हो गए क्या ,पेड़ कहने से सभी आम हो गए क्या ?

प्रश्नकर्ता 👉 नहीं...... शेर जानवरों की जाति है.., तोता पक्षियों की जाति हे,... और आम पेड़ की जाति है !

उत्तर : तो क्या इन्हें इन्सान ने बनाया है ?

प्रश्नकर्ता 👉 नहीं.....ये तो ईश्वर की बनाई व्यवस्था है।

उत्तर 👉 ठीक उसी प्रकार मनुष्य कहने से सभी ब्राह्मण हो गए क्या ? नहीं..... ये तो मनुष्यों की जाति व्यवस्था हे जो की ईश्वर द्वारा बनाई गयी हे जैसे जानवर शब्द से हजारो जानवरों का होना समझा जाता हे पक्षी शब्द से हजारो प्रकार के पक्षी होने का बोध होता हे फल शब्द से हजारो प्रकार के फलो का होना सुनिश्चित होता है उसी प्रकार मनुष्य शब्द से हजारो प्रकार के मनुष्यों का होना सिद्ध होता हे..... साथ ही साथ इन सभी की जाति के साथ साथ प्रजाति का होना भी पाया जाता है !और सुनो जातिव्यवस्था केवल इन्सान के लिए ही नहीं अपितु यह संसार अनेक प्रकार की विविधताओ से भरा पड़ा है !आप स्वयं देखिये आम की कितनी प्रजातिया होती हे...नीम की कितनी प्रजाति होती हे...शेर की जाति प्रजाति...बन्दर ,घोडा ,तोता ,सर्प ,गेंहू चना ,चावल ,इत्यादि !अतः अब आप ही बताए कि इसमें इन्सान द्वारा जातिव्यवस्था का निर्धारण करना कहा सिद्ध होता है !

प्रश्नकर्ता 👉 मै आपकी बात से सहमत हूँ कृपया आप जातिव्यवस्था के विज्ञानं को सरल भाषा में विस्तार से समझाने का कष्ट करे !

उत्तर 👉 ब्रम्हाजी ने स्रष्टि रचना के समय अपने मुख से ब्राह्मण को उत्पन्न किया ,भुजाओ से क्षत्रियो को उत्पन्न किया ,अपने उदर से वेश्यो को प्रकट किया तथा अपने चरणों से शुद्रो की उत्पत्ति की.....आर्थात मुख से मेधाशक्ति .भुजाओ से रक्षाशक्ति ,उदर से अर्थशक्ति ,एवं चरणों से श्रमशक्ति को उत्पन्न किया ,.......इसका अर्थ यह हुआ की ब्राह्मणों के पास जो शक्ति हे उसका सम्बन्ध सिर से हे यानि ब्राह्मण के पास देखने,सुनने ,बोलने ,बताने ,सूंघने,तथा किसी को भी खा जाने की शक्ति होती है,प्राचीन काल में किसी भी राज्य में जो राजा होता था वह मार्गदर्शक के रूप में किसी ब्राह्मण को जरुर नियुक्त करता था तथा उन्ही के परामर्श से अपनी प्रजा का पालन करता था क्योकि वह जानता था की मेरे पास शक्ति हे ज्ञान नहीं....,क्षत्रियो को भुजाओ से उत्पन्न किया तो स्वाभाविक हे की उनके पास भुजाओ का बल अत्यधिक पाया जाता हे और किसी भी राज्य की रक्षा का दायित्व क्षत्रियो का होता है ,उसी प्रकार वेश्यो की उत्पत्ति उदर से हुई तो उनके पास संग्रह तथा वितरण की कुशलता पाई जाती हे यही उसकी शक्ति का आधार है ,ठीक उसी प्रकार शुद्रो को पैरो से उत्पन्न किया याने शुद्रो के पास श्रम शक्ति होती जो श्रम वे कर सकते है वह अन्य कोई वर्ण या जाती का व्यक्ति नहीं कर सकता इसीलिए भगवान् कहते हे सभी की धर्मो सिद्धि का मूल सेवा है...... सेवा किये बिना किसी का भी धर्म सिद्ध नहीं होता अतः सब धर्मो की मुलभुत सेवा ही जिसका धर्म है... वह शुद्र सब वर्णों में महान हे.. ब्राह्मण का धर्म मोक्ष के लिए हे.. ,क्षत्रिय का धर्म भोग केलिए...,वेश्य का धर्म अर्थ के लिए है... ,और शुद्र का धर्म -धर्म के लिए है.., इस प्रकार अन्य तीन वर्णों के धर्म अन्य तीन पुरषार्थ के लिए है किन्तु शुद्र का धर्म स्व पुरषार्थ के लिए है अतः इसकी वृति से ही भगवन प्रसन्न हो जाते है अस्तु अब आगे सुनिए यह जो ब्रम्हाजी की स्रष्टि हे यह भगवान का शारीर ही हे इसी में सारा ब्रम्हाण्ड बसा हुआ हे सारे लोक इसी शारीर में है ! यह विराट शारीर ही हमारा संसार हे !अब आप बताइए की किस किस अंग से कोन सा कार्य होता है......... सिर का कार्य हाथो द्वारा संभव है... ,नहीं....हाथो का कार्य उदर द्वारा संभव है, नहीं......उदर का कार्य पैरो द्वारा संभव है, नहीं........ जातिगत व्यवस्था को कदाचित भंग कर दिया जाए तो क्या स्थिति उत्पन्न होगी विचार कीजिए................विचार क्या कीजिए अरे देख ही लीजिए वर्तमान में जो शिक्षा पद्धति व् जीविका पद्धति हमारे ऊपर थोपी गयी है उसका परिणाम क्या हो रहा है वर्णसंकरता, कर्मसंकरता.........और ऊपर से आरक्षण... हमारे यहाँ कभी भी किसी के लिए भी रोजी रोटी का संकट था क्या ?कभी नहीं प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाती तथा वर्ण के अनुसार अपना जीवन यापन करता था !कोई भी किसी के कर्म का अतिक्रमण नहीं कर सकता था अपितु एक दुसरे के सामंजस्य से सारे कार्य होते थे,........कोई भी समाज अपने को हिन् नहीं समझता था !प्रत्येक समाज अपनी जाति पर गर्व महसूस करता था क्योकि वो जानते थे की जो गुण योग्यता उनमे है वह अन्य के पास नहीं है यह ईश्वर का उस समाज के लिए वरदान हुआ या नहीं ?
अब मै आपको दुसरे रूप में समझाता हु ,कल्पना कीजिए कि आप स्वयं भगवान् विराट है यह शारीर जो आपको प्राप्त हुआ है यह आपका संसार है और इस शारीर के मालिक या भगवान आप है एवं इस संसार में आपको मुख के रूप में ब्राह्मण ,भुजाओ के रूप में क्षत्रिय ,उदर के रूप में वेश्य ,और पैरो के रूप में शुद्र ,प्राप्त हुए है !अब इनसे आपको इस संसार रूपी शारीर का संचालन करना हे कैसे करेंगे ?अब आप कहे की मै जातिव्यवस्था में विश्वास नहीं करता बल्कि सबको सामान दृष्टि से देखता हु... कोई ब्राह्मण नहीं ,कोई क्षत्रिय नहीं ,कोई वेश्य नहीं ,कोई शुद्र नहीं ,आर्थात सभी अंगो को सामान मानता हु किसी भी अंग से कोई भी कार्य करा सकता हु !और तो और अब मै अपने चरणों को यानि की शुद्रो को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करूँगा और ब्राह्मणों से वो कार्य करवाऊंगा जो आजतक श्रमशक्ति {शुद्र}द्वारा किये जाते थे !वेश्यो के कार्य क्षत्रिय करेंगे ,क्षत्रिय के कार्य वेश्यो से ,आर्थात सभी वर्णों को सभी कार्य का अधिकार होगा !अब फिर से आप कल्पना करके बताओ की आपके संसार रूपी शारीर की स्थिति क्या होगी ?.....................वही स्थिति आज हमारे समाज की हो रही है उदाहरण लीजिए जब से आरक्षण आया हे तब से हमारे चरण {श्रमशक्ति}जमीं से ऊपर उठ गए क्या मतलब निकला...... चरणों का स्थान वाहनों ने ले लिया या नहीं... आज कितने व्यक्ति संसार में अपने पैरो का उपयोग करते हे आवागमन में…… अब पैरो का उपयोग केवल विशेष परिस्थिति में ही किया जाता है ताकि इन्हें किसी प्रकार का कष्ट न हो !और तो और टी.वी.का चेनल बदलने के लिए भी पैरो को कष्ट देना उचित नहीं रह गया विकल्प के तौर पर अब हमारे पास रिमोट कण्ट्रोल जो आ गया है !अब जब पैरो द्वारा श्रम ही नहीं होगा तो क्या होगा .......मोटापा बढ़ जाएगा पेट बाहर निकल आएगा....मतलब संसार की सारी संपत्ति का वेश्य {उदर}संग्रहण तो करेंगे किन्तु वितरण नहीं होगा......वितरण क्यों नहीं होगा क्योकि श्रम नहीं हो रहा......अब बारी आती है ब्राह्मणों की यानि मुख की.........क्या स्थिति है आज मुख {ब्राह्मण}की जितनी सफाई इसकी की जाती है शायद ही किसी अंग को इतना चमकाया जाता हो जितना चेहरे को चमकाया जाता हे !सबसे ज्यादा जिम्मेदारी भी इसी की है...क्योकि संसार रूपी शारीर के सञ्चालन में इसकी भूमिका सबसे अहम् होती है....बगैर पैरो के शारीर जीवित रह सकता हे ........बगैर हाथो के शारीर जीवित रह सकता है ....किन्तु सिर को अगर धड से अलग कर दिया जाए तो कोई जीवित रह सकता है ....कल्पना कीजिए महोदय......एसा हे की हम कोई समानता के विरोधी नहीं है सभी को समानता का अधिकार निश्चित ही प्राप्त होना चाहिए इसमें कुछ भी गलत नहीं है किन्तु समानता का मतलब किसी के अधिकारों का अतिक्रमण करना नहीं है !आप ही बताईए आप अपने किस अंग से भेदभाव करते है... किसी से नहीं... क्योकि वे सब आपके अंग है !
अभी कुछ समय पहले एक पोस्ट फेसबुक पर पढ़ रहा था उसमे एक सज्जन ने जातिव्यवस्था के बारे में लिखा की ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण, क्षत्रीय का बेटा क्षत्रिय........ ,एसा कैसे संभव हो सकता है...इस प्रकार तो डॉक्टर का बेटा डोक्टर ,मास्टरजी का बेटा मास्टर यह तो गलत है ..................अब मै उन सज्जन से कहूँगा की मान्यवर आप जिस व्यवस्था के अनतेरगत बात कर रहे वह मैकाले महोदय की शिक्षा पद्धति के डॉक्टर व् ,मास्टरजी हे न कि सनातन व्यवस्था के…. हमारे यहाँ तो वैद्य का बेटा वैध ,सुतार का बेटा सुतार ,लोहार का बेटा लोहार ,सुनार का बेटा सुनार ,ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण ,और क्षत्रिय का बेटा क्षत्रिय ही होता है !उन्हें कुछ सिखने कही बाहर नहीं जाना होता अपितु अपनी परम्परा प्राप्त आजीविका का ज्ञान उसके DNA यानि संचित कर्म में रचा बसा होता है !आवश्यकता है तो अपने वर्ण या जाति के गुणों को निखारने की क्योकि हीरे को जब तक तराशा नहीं जावेगा तब तक वह किसी के मुकुट की शोभा नहीं बढ़ा सकता।
Arun dubey jabalpur 
जिनको यह व्यवस्था स्वीकार नही वह कृपया 
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सत्ता और संविधान पर क्रोध दिखाये।।
#शास्त्र_स्वाध्याय_ही_विकल्प_है_प्रश्न_विकल्प_नही।।

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