ग्रहों की महादशाओं के सामान्य फल

ग्रहों की महादशाओं के सामान्य फल
विभिन्न ग्रहों की महादशाओं, अन्तर्दशाओं, प्रत्यन्तर्दशाओं आदि के सामान्य अथवा विशिष्ट फल उनकी शुभाशुभ स्थिति आदि पर निर्भर करते हैं। इस विषय की विशेष जानकारी हेतु एतद्विषयक ज्योतिष ग्रंथों का अध्ययन करें। यहां पर महादशाओं के संक्षिप्त फलादेश प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
सूर्य महादशा फल
यदि सूर्य पूर्णबली हो तो भूमि, अग्नि, औषध, शस्त्र, राजा तथा ब्राह्मण द्वारा धन लाभ व परदेश वास की संभावना होती है। मध्यम बली हो तो अभिचार कर्म में रुचि, राजा से प्रेम, युद्ध, चिन्ता, वाक्पटुता एवं प्रसिद्धि लाभ होता है। यदि सूर्य हीन बली हो तो बंधु वर्ग से भय, स्त्री-पुत्र वियोग, राजा तथा अग्नि से भय, चिन्ता, ऋण ग्रस्तता, दंत एवं उदर पीड़ा आदि अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
यदि मेष राशि में सूर्य उच्च का हो तो धर्म-कर्म में रुचि, परदेशगमन, स्त्री-पुत्रादि का सुख तथ धन लाभ। मेष राशिस्थ सूर्य अष्टम में हो तो अशुभ फल, षष्ठभाव में हो तो पितृविरोध एवं पीड़ा। वृष में हो तो धन नाश, स्त्री-पुत्रादि का कष्ट, स्थावर संपत्ति की चिन्ता। मिथुन में हो तो धन-धान्य सुख आदि की वृद्धि। कर्क में हो तो माता-पिता व भाइयों से अलगाव, राज मैत्री से लाभ, ख्याति वृद्धि। सिंह में हो तो यश, धन व सुख की वृद्धि। कन्या में हो तो भूमि, वाहन, स्त्री आदि का सुख । तुला में हो तो चिन्ता, अग्नि-भय तथा अन्य हानियां। अष्टम भावस्थ हो तो चित्त में उद्विग्नता एवं षष्ठ भाव में हो तो शत्रु कष्ट एवं व्रण पीड़ा। वृश्चिक में हो तो शस्त्र, अग्नि, कीट आदि से भय तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि। धनु में हो तो ऐश्वर्यादि सुखों का लाभ । मकर में हो तो सुख तथा धन में कमी, पराधीनता। कुंभ में हो तो दरिद्रता, सुख हीनता। मीन में हो तो सुख, यश, लाभ।
यदि प्रथम भाव में हो तो प्रवास, रोग। द्वितीय में हो तो धन-नाश, राज-भय । तृतीय में हो तो उच्चाधिकार, सुख, राजसम्मान, पराक्रम वृद्धि। चतुर्थ में हो तो धन हानि तथा भय। पंचम में हो त स्वयं तथा संतान को कष्ट, बुद्धि भ्रम, धन संचय षष्ठ में हो तो शत्रु नाश, पितृविरोध, ज्वरादि कष्ट। सप्तम में हो तो स्त्री को कष्ट। अष्टम में हो तो शारीरिक कष्ट। नवम में हो तो स्वजन विरोध, वृद्धि। दशम में हो तो राजसम्मान, धन-लाभ, सुख-वृद्धि। एकादश में हो तो ऐश्वर्य, यश, लाभ । द्वादश में हो तो धन नाश, ऋण, अपयश
चन्द्र महादशा फल
चन्द्रमा पूर्णबली हो तो धन, यश, लाभ। मध्यम बली हो तो सद्गुण, बुद्धि, यश में वृद्धि। हीन बली हो तो चित्त की चंचलता, आलस्य । क्षीण चन्द्र षष्ठ भाव में हो तो अनुचित धन लाभ ।
मेष राशिस्थ हो तो विदेश प्रवास, स्त्री-पुत्र सुख । वृष में हो तो धन, पद, यश लाभ। मिथुन में तो धन, ऐश्वर्य, धर्म में वृद्धि। कर्क में हो तो धन-धान्य, कृषि, स्थावर संपत्ति तथा यश में वृद्धि। सिं में हो तो पद, सम्मान एवं धन लाभ। कन्या में हो तो धन, अधिकार, कला में लाभ, अल्प सिद्धि तथा पाप बुद्धि। तुला में हो तो धन-लाभ सामान्य एवं धर्म-हानि, स्त्री से कष्ट । वृश्चिक में हो तो क्लेश, दुःख, हानि। धनु में हो तो वाहन, धन सुख, सौभाग्य वृद्धि। मकर में हो तो धन-लाभ, स्त्री-सुख। कुंभ में हो तो ऋणग्रस्तता, चंचलता, शारीरिक अस्वस्थता । मीन में हो तो शत्रु नाश, स्त्री-पुत्रादि का सुख, सुयश एवं धन लाभ।
प्रथम भाव में हो तो शारीरिक व गृहस्थ कष्ट। द्वितीय में हो तो ऐश्वर्य सुख, पुत्र-सुख । तृतीय हो तो उत्कर्ष, सुख, सम्मान। चतुर्थ में हो तो सुख, यश, वाहन, संपत्ति लाभ। पंचम में हो तो पद, प्रतिष्ठा, उन्नति । षष्ठ में हो तो शत्रु-भय, रोग, धन हानि । सप्तम में हो तो स्त्री सुख, व्यवसाय से लाभ। अष्टम में हो तो कष्ट, भय, हानि, संकट। नवम में हो तो धन, भाग्योदय। दशम में हो तो यश उत्कर्ष, धन लाभ। एकादश में हो तो सभी प्रकार के लाभ। द्वादश में हो तो धन हानि अथवा अनीतिपूर्वक धन लाभ, संकट, भ्रमण, अपयश।
मंगल महादशा फल
यदि मंगल पूर्णबली हो अनेक प्रकार के लाभ, यश- धनादि प्राप्त होते हैं। मध्यम बली होने पर युद्ध में विजय, राज्य की ओर से लाभ तथा साहस प्राप्ति की संभावना रहती है। हीन बली होने प गृह-क्लेश, राज्य की ओर से भय तथा रक्त सम्बन्धी दोष पैदा होते हैं।
मेष राशि में होने पर सुख, सम्मान, विजय व धन प्राप्ति होती है। वृष में होने पर स्त्री को कष्ट अन्य व्यक्ति द्वारा धन-लाभ होता है। मिथुन में हो तो व्यवहार पटु, वाचाल, अधिकारी वर्ग पर प्रभाव होता है। कर्क में होने पर स्त्री पुत्र से अलगाव, मकान तथा सेवक का सुख प्राप्त होता है। सिंह राशिस्थ होने पर पत्नी-पुत्रादि का वियोग रहता है, दृढ़ता व सौभाग्य प्राप्त होते हैं। कन्या राशि में होने पर स्त्री-पुत्र व धन का अपूर्व सुख प्राप्त होता है। तुला राशि में होने पर पत्नी, धन, पशु आदि का नुकसान होता है, घर में क्लेश-पीड़ा रहती है। वृश्चिक राशिस्थ होने पर धन-धान्य वृद्धि, शत्रु पर विजय तथा कृषि में लाभ होता है। धनु में होने पर मनोवांछित वस्तुओं की प्राप्ति, धन लाभ तथा विजय प्राप्त होती है। मकर में धन लाभ, विजय, सुख व अधिकार रूपी रत्न प्राप्त होते हैं। कुंभ राशिस्थ हो तो उद्वेग, धर्म, आचारहीनता, रोग, दरिद्रता तथा चिन्ता होती है। मीन रा में होने पर व्ययाधिक्य, परदेशगमन, ऋणग्रस्तता तथा हानि जैसे विकार पैदा होते हैं।
प्रथम भाव में होने से धन का नाश, पराजय, उद्वेग, चिन्ता, स्त्री कष्ट व व्यवसाय व्यापार में संकट आ सकता है। द्वितीय भाव में होने से अस्थिरता, अपव्यय, धन की कमी और सन्तान को कष्ट होता है। तृतीय भाव में होने से धन, प्रतिष्ठा, अधिकार तथा पद लाभ होता है। चतुर्थ भाव में होने से संपत्ति और संतान संबंधी चिन्ता, रोग होने का भय, स्थावर सम्पत्ति की चिन्ता होती है। पंचम भाव में होने से संतान संबंधी चिन्ता तथा धन का व्यय होता है। षष्ठ भाव होने से आर्थिक क्षेत्र में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और शत्रु पर विजय होती है। सप्तम भाव में होने से व्यवसाय क्षेत्र में हानि और स्त्री को कष्ट होता है। अष्टम भाव में होने से रोग-भय, धन नाश, मृत्यु-तुल्य कष्ट और अपमान होता है। नवम भाव में होने से पापवृत्ति, धर्म की हानि तथा दंभ में वृद्धि होती है। दशम भाव में होने से सर्वोच्च पद, व्यवसाय में लाभ, अधिकार एवं शत्रु नाश होता है। एकादश भाव में होने से स्त्री कष्ट, धन हानि, संपत्ति-लाभ तथा संतान कष्ट होता है। द्वादश भाव में होने से गृह संकट राज-भय, अपमान एवं शत्रु-पीड़ा होती है।
बुध महादशा फल
यदि बुध पूर्ण बली हो तो उत्कर्ष का लाभ, विवेक, वस्त्राभूषणों की उपलब्धि, नए भवनों का निर्माण एवं स्त्री तथा पुत्र आदि का सुख प्राप्त होता है। मध्यम बली होने से स्त्री और पुत्र सुख के बजाय कष्ट तथा कई अन्य अशुभ फलों को भोगना पड़ता है।
मेष राशि में होने से चोरी, हानि, दरिद्रता, संकट आदि प्राप्त होते हैं। वृष राशि में होने से स्त्री-पुत्र आदि के बारे में चिन्ता तथा धन की हानि होती है। मिथुन में होने से स्त्री-पुत्र आदि से सुख ए बुद्धि का विकास होता है। कर्क में होने से विदेश वास, मित्र का विरोध, दुख, कवित्व आदि प्राप्त होता है। सिंह में हो तो पुत्र- स्त्री का सुख, यश, धन एवं धैर्य का नाश होता है। कन्या राशि में होने शत्रुओं पर विजय, लाभ, ऐश्वर्य, ग्रंथ लेखन, भोग आदि लाभ प्राप्त होते हैं। तुला में होने पर स्त्री सुख, बुद्धि, धन एवं विवेक आदि लाभ प्राप्त होता है। वृश्चिक में होने से शारीरिक कष्ट, धन का नाश तथा विपत्ति आदि को सहना पड़ता है। धनु में होने से यश, धन, पद, लाभ तथा अधिकारों में वृद्धि होती है। मकर में होने से अग्नि, विष आदि से पीड़ा तथा अनेक प्रकार के संकटों का सामन करना पड़ता है। कुंभ में होने से विदेश-यात्रा, अत्यधिक व्यय तथा अन्य लाभ प्राप्त होते हैं। मीन होने से विष, अग्नि आदि से पीड़ा तथा अनेक प्रकार के संकट का सामना करना पड़ता है।
प्रथम भाव में होने से सम्मान, संतोष, यश, सुख तथा लाभ प्राप्त होते हैं। द्वितीय भाव में होने से विद्या एवं मान-सम्मान प्राप्त होता है। तृतीय भाव में होने से मित्रों से लाभ तथा शारीरिक कष्ट प्राप्त होते हैं। चतुर्थ भाव में होने से व्यावसायिक संकट, अपयश तथा अनेक प्रकार के कष्ट प्रकट होते हैं। पंचम भाव में होने से मानसिक एवं शारीरिक कष्ट प्राप्त होता है। षष्ठ भाव में होने से रोग वृद्धि होती है तथा स्वभाव में दुर्बलता आती है। सप्तम भाव में होने से संतान और स्त्री का सुख प्राप्त होता है। अष्टम भाव में होने से मृत्यु तुल्य कष्ट और अनेक प्रकार के कष्ट प्राप्त होते हैं। नव भाव में होने पर, भाग्योदय, सुख और धर्माचरण आदि का भय रहता है। दशम भाव में होने पर धन, पद, यश आदि कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। एकादश भाव में होने पर वाहन की प्राप्ति, धन आदि का सुख प्राप्त होता है। द्वादश भाव में होने पर संकट, शत्रु-भय और अधिक व्यय की संभावना बनी रहती है।
गुरु महादशा फल
गुरु के पूर्णबली होने पर राजा से भूमि, वाहन, अभीष्ट वस्तुओं का लाभ तथा सम्मान व आद
आदि का लाभ होता है। मध्यम बली हो तो धैर्य एवं बल की वृद्धि, भूमि, वाहन तथा सम्मान का फल मिलता है। हीनबली होने पर कई प्रकार के रोग और बुखार आदि से कष्ट प्राप्त होते हैं।
मेष राशि में होने से धन, विद्या, पत्नी तथा पुत्र आदि का लाभ प्राप्त होता है। वृष में होने पर धन की हानि, सुखों की हानि तथा अनेक कष्ट होते हैं। मिथुन में होने से क्लेश, दुख और धन की हानि होती है। कर्क में होने से सर्वोच्च पद, ऐश्वर्य, यश आदि का लाभ प्राप्त होता है। सिंह में होने धन-संपत्ति, शौर्य-पराक्रम एवं सुख का लाभ होता है। कन्या में हो तो विवाद, अपमान, भ्रमण, ध का व्यय आदि होता है। तुला में होने से शौर्य-पराक्रम की हानि, अपमान और गलत कार्यों में बुद्धि का प्रयोग होता है। वृश्चिक में होने से पुत्र, ज्ञान, विद्या, धन आदि का लाभ प्राप्त होता है। धनु में होने से सर्वोच्च पद, सुख, धर्म-कर्म में रुचि का विकास होता है। मकर में होने पर पत्नी तथा पुत्र को कष्ट, लोगों से विरोध आदि का भय रहता है। कुंभ में होने से सर्वोच्च पद, धन, विद्या, सुख आदि का लाभ प्राप्त होता है। मीन में होने से आदर-सम्मान, ऐश्वर्य एवं सभी सुखों का लाभ प्राप्त होता है।
प्रथम भाव में होने पर संतान का सुख एवं विद्या बुद्धि प्राप्त होती है। द्वितीय भाव में होने से यश, सुख, धन वृद्धि, पराक्रम आदि लाभ प्राप्त होते हैं। तृतीय भाव में होने पर यश, सुख तथा ध आदि का लाभ होता है। चतुर्थ भाव में होने से स्वास्थ्य लाभ तथा अनेक प्रकार के आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं। पंचम भाव में होने से सम्मान, आदर एवं यश, धन आदि अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। षष्ठ भाव में होने से व्यापार व्यवसाय में लाभ, आदर एवं संतान सुख प्राप्त होते हैं। सप्तम भाव में होने से व्यापार-व्यवसाय में लाभ, धन तथा स्त्री-पुत्र आदि अनेक लाभ होते हैं। अष्टम भाव में हो से स्वयं तथा पत्नी को कष्ट और अनेक सम्मान प्राप्त होते हैं। नवम भाव में होने पर गह-परिवार के सुख, धन-संपत्ति आदि लाभ प्राप्त होते हैं। दशम भाव में होने से धन-सम्मान और उच्चतम अधिकारों की प्राप्ति होती है। एकादश भाव में होने पर राजा का विरोध, वाहन, रोजगार तथा नौकरी आदि सुख प्राप्त होते हैं। द्वादश भाव में होने से स्थायी संपत्ति तथा शारीरिक कष्ट प्राप्त होते हैं।
शुक्र महादशा फल
यदि शुक्र पूर्णबली हो तो वाहन, स्त्री, रत्नाभूषण आदि का सुख मिलता है। क्रय-विक्रय में सम्मान व दक्षता का लाभ होता है। मध्यम बली होने से विदेश यात्रा, अपने पूर्वजों के धन का लाभ, धन, वाहन, पुत्र-पौत्रादि का लाभ तथा स्वजनों से कलह का भय रहता है। हीनबली होने से शारीरिक दुर्बलता, दुष्ट लोगों से मैत्री तथा देव-ब्राह्मणों की चिन्ता आदि रहती है।
मेष राशि में होने से धन हानि, स्त्री तथा सुख की हानि एवं उद्वेग आदि होता है। वृष में होने सं धन, विद्या, स्थायी संपत्ति आदि का लाभ होता है। मिथुन में होने पर ग्रंथ का लेखन, कला-कुशलता तथा विद्या आदि लाभ मिलते हैं। कर्क में होने पर व्यापार व्यवसाय में वृद्धि तथा स्त्रियों
प्रेम होता है। सिंह में होने से स्त्री द्वारा लाभ और सामान्य अर्थ कष्ट प्राप्त होता है। कन्या में हो पर आर्थिक कष्ट, स्त्री-पुत्र से हानि और व्यवसाय में वृद्धि होती है। तुला में होने पर आदर-सम्मान स्त्री, पुत्र, धन आदि लाभ प्राप्त होते हैं। वृश्चिक में होने पर यश, साहस, पराक्रम में वृद्धि, आय, ऋण-मुक्ति आदि प्राप्त होते हैं। धनु में होने से शत्रुओं की संख्या में वृद्धि, क्लेश, भय, चिन्ता आ में बढ़ोत्तरी होती है। मकर में होने पर रोग, चिन्ता, कष्ट परन्तु शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। कुं में होने पर रोग, कष्ट, धन हानि तथा शुभ कार्यों को हानि पहुंचती है। मीन में होने पर ऐश्वर्य, सम्मान, वैभव, सुख आदि लाभ प्राप्त होते हैं।
प्रथम भाव में होने पर शारीरिक तथा मानसिक सुख, यश, प्रतिष्ठा आदि लाभ होते हैं। द्वितीय भाव में होने पर धन-संपत्ति का व्यय, स्त्री को कष्ट और सत्कर्मों में धन का व्यय होता है। तृतीय भाव में होने पर मातृ-सुख, प्रवास एवं स्थान परिवर्तन होता है। चतुर्थ भाव में होने से वाहन, पद, सुख, भूमि, कीर्ति आदि का लाभ प्राप्त होती है। पंचम भाव में होने पर बुद्धि, विद्या, पराक्रम तथा शुभ फलों का लाभ मिलता है। षष्ठ भाव में होने पर स्त्री-पुत्र सुख तथा हानि दोनों, शारीरिक कष्ट रोग आदि का भय रहता है। सप्तम भाव में होने पर व्यवसाय व्यापार, धन, चिन्ता और उद्योग में अनिश्चितता आ जाती है। अष्टम भाव में होने पर मानसिक-शारीरिक कष्ट आदि सहने पड़ते हैं। नवम भाव में होने से ऐश्वर्य, स्त्री, वाहन आदि का सुख प्राप्त होता है। दशम भाव में होने पर व्याप व्यवसाय में उन्नति, यश और राज सम्मान की प्राप्ति होती है। एकादश भाव में होने पर सम्मान, सुख तथा अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। द्वादश भाव में होने पर शारीरिक-मानसिक व्याधि, चिन्ता, कष्ट आदि प्राप्त होते हैं।
शनि महादशा फल
यदि शनि पूर्ण बली की दशा में हो तो वाहन, घर, पराक्रम, यश, दान-धर्म, उच्चाधिकार, कला-कुशलता आदि अनेक प्रकार का लाभ प्राप्त होता है। मध्यम बली होने पर यश, देव भक्ति तथा बुद्धि और कुल में प्रधानता का लाभ प्राप्त होता है। हीन बली होने पर चर्म रोग, आलस, उदासी, निद्रा आदि अनेक अशुभ फल प्राप्त होते हैं।मेष राशि में होने से मित्र-वियोग और अनेक कष्टों को सहना पड़ता है। वृष में होने से साहस, पराक्रम, विजय तथा स्त्रियों से मित्रता होती है। मिथुन में होने पर कष्ट, चिन्ता और ऋणग्रस्तता प्राप्त होती है। कर्क में होने से मित्र-वियोग, सामान्य-सुख और दरिद्रता प्राप्त होती है। सिंह में होने से स्त्री एवं पुत्र के साथ कलह तथा आर्थिक कष्ट प्राप्त होते हैं। कन्या में होने से घर का सुख भूमि लगान तथा आर्थिक दृढ़ता आदि प्राप्ति होती है। तुला में होने से भोग, सम्मान, धन-संपत्ति आदि का लाभ होता है। वृश्चिक राशि में होने पर भ्रमण कार्य, आर्थिक कष्ट तथा देशान्तर प्रवास आदि लाभ होते हैं। धनु में होने से विजय, सुख, आनंद, धर्म आदि लाभ प्राप्त होते हैं। मकर में हो तो हानि, विपत्ति, आर्थिक कष्ट, विषय लिप्सा आदि प्राप्त होते हैं। कुंभ में होने पर स्त्री-पुत्र सुख तथ धन-लाभ होता है। मीन में होने पर अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।
प्रथम भाव में हो तो चिन्ता, आर्थिक हानि आदि अशुभ फल प्राप्त होते हैं। द्वितीय भाव में हो पर स्त्री कष्ट, राज-भय तथा कौटुम्बिक भय बना रहता है। तृतीय भाव में होने पर पराक्रम में वृद्धि और राज-भय होता है। चतुर्थ भाव में होने पर शत्रु तथा राज्याधिकारी से भ्रम प्राप्त होता है। पंच भाव में होने पर संतान कष्ट, बुद्धि का नाश तथा धन की कमी होती है। षष्ठ भाव में होने पर धन-लाभ परन्तु शारीरिक एवं मानसिक कष्ट होता है। सप्तम भाव में होने पर रोग नाश, धन-लाभ, सु तथा शत्रु नाश होता है। अष्टम भाव में होने पर अपमान, मृत्यु-तुल्य कष्ट और भयंकर रोग होते हैं। नवम भाव में होने पर रोग-नाश, शत्रु नाश, सुख और धन लाभ होता है। दशम भाव में होने पर स्त्री, पुत्र और सेवक से त्रास तथा व्यवसाय में विघ्न आता है। एकादश भाव में होने पर उत्कर्ष, राज सम्मान तथा अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। द्वादश भाव में होने पर राज - दण्ड, अपयश ऋणग्रस्तता और दुख आदि प्राप्त होता है।
राहु महादशा फल
राहु की महादशा होने पर सामान्य तौर पर धन-नाश, रोग, कष्ट, प्रियजनों का वियोग, मृत्यु - तुल्य कष्ट, अनेक प्रकार के कष्ट तथा दुःख भोगने पड़ते हैं। उच्च राशिस्थ राहु शुभ फल प्रदान करता है तथा नीचस्थ राहु अशुभ फल देता है। शुभाशुभ ग्रहों की युति और दृष्टि का भी राहु के फल पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
मेष राशि में होने से मित्र-विरोध, धन लाभ तथा सामान्य सुख प्राप्त होते हैं। वृष में होने से राज्य से लाभ, अधिकार तथा सफलता मिलती है। मिथुन में हो तो आरंभ में कष्ट, मध्य में सुख तथा लाभ होता है। कर्क में होने पर धन-लाभ, पुत्र लाभ तथा नवीन कार्यारंभ होते हैं। सिंह में हो से कामों में सफलता किन्तु अनेक रोग होते हैं। कन्या में होने से मध्य वर्ग से लाभ और व्यसनों से हानि होती है। तुला में होने से यश-लाभ, आकस्मिक कष्ट तथा बन्धुद्वेष होते हैं। वृश्चिक में होने से शत्रुओं से हानि, आर्थिक कष्ट तथा अन्य अशुभ फल प्राप्त होते हैं। धनु में होने से सम्मान लाभ, उच्चपद तथा यश प्राप्त होता है। मकर में होने से रोग, कष्ट, आर्थिक कष्ट और अन्य स्थितियां सामान्य होती हैं। कुंभ में होने से शरीर स्वस्थ, सुख, व्यवसाय में सफलता और विजय प्राप्त होती है। मीन में होने से रोग, संकट, कलह एवं विरोध आदि होते हैं।
कलह एवं विरोध आदि होते हैं। प्रथम भाव में होने से शत्रु-भय, अग्नि भय तथा मानसिक कष्ट होता है। द्वितीय भाव में होने गृह परिवार से पीड़ा, उद्योग-व्यवसाय में हानि होती है। तृतीय भाव में होने से परिवार सुख, उद्योग सिद्धि एवं धन प्राप्त होता है। चतुर्थ भाव में होने से स्थावर संपत्ति के नष्ट होने तथा अन्य भय रहा हैं। पंचम भाव में होने से विद्या-ज्ञान के क्षेत्र में अपयश, ऋणग्रस्तता, धन की कमी होती है। षष्ठ भाव में होने से धन लाभ, रोग, कष्ट, यश, शत्रु-नाश आदि होता है। सप्तम भाव में होने से पत्नी व कष्ट, मृत्यु भय, धन की हानि आदि का भय होता है। अष्टम भाव में भाग्य-हानि, शारीरिक कष्ट, धन की हानि आदि होती है। नवम भाव में होने से, तीर्थ स्थलों की यात्रा, मित्र-वियोग, स्थानान्तरण आदि होता है। दशम भाव में होने से शुभ कर्मों में रुचि और व्यवसाय व्यापार में लाभ होता है। एकादश भाव में संतान सुख, धन, स्त्री-आनन्द आदि का लाभ होता है। द्वादश भाव में की हानि तथा राज-कोष में भी हानि होती है।
केतु महादशा फल केतु की महादशा में सामान्य रूप से विषाद, रोग, भय, संकट, अनर्थ, जीवन पर गहरा प्राण संकट आदि अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। केतु के उच्च राशिस्थ अथवा शुभ ग्रह से दृष्ट होने पर वह शुभ फल प्रदान करता है तथा नीचस्थ अथवा पापी ग्रह से दृष्ट होने पर वह अशुभ फल प्रदान करता है। केतु पर अन्य ग्रहों की दृष्टि विशेष प्रभाव डालती है।
मेष राशि में होने पर धन, यश तथा आकस्मिक लाभ प्राप्त होता है। वृष में होने पर हानि, का पीड़ा, चिन्ता तथा भय बना रहता है। मिथुन राशि में होने से रोग, पीड़ा, मित्र-विरोध तथा यश आदि फल मिलते हैं। कर्क में होने पर मित्र, स्त्री, पुत्र का सुख, अनेक प्रकार के सुख आदि लाभ प्राप्त होता है। सिंह में हो तो अल्प सुख एवं अल्प धन लाभ होता है। कन्या में होने से नवीनतम कार्यों में रुचि, सत्कर्मों में रुचि एवं प्रसिद्धि लाभ प्राप्त होता है। तुला में होने से आय लाभ, व्यसनों में रुचि, कार्य में हानि होती है। वृश्चिक में होने पर आदर, सम्मान, धन, स्त्री का लाभ, कफ-रोग, बन्धन, कष्ट आदि प्राप्त होते हैं। धनु में होने पर भय, कलह, आंखों का रोग, शिरोरोग आदि संकट का सामना करना पड़ता है। मकर में होने पर व्यापार व्यवसाय में सफलता तथा नवीन कार्यों में हानि होती है। कुंभ में होने से आर्थिक कष्ट, मित्र विरोध, पीड़ा आदि कष्ट होते हैं। मीन में होने से अचानक धन लाभ, यश, कीर्ति तथा विद्या का लाभ प्राप्त होता है।
प्रथम भाव में होने पर शारीरिक अशक्तता तथा कई रोग हो जाते हैं। द्वितीय भाव में होने पर ऋणग्रस्तता, पराधीनता एवं मानसिक कष्ट बने रहते हैं। तृतीय भाव में होने से मित्र पर विरोध होता है परन्तु पराक्रम में वृद्धि होती है। चतुर्थ भाव में होने पर स्त्री, पुत्र से क्लेश, लोकापवाद  आदि होता है। पंचम भाव में होने पर बुद्धि का नाश, विद्या से अपयश तथा हानि होती है। षष्ठ भा में होने पर मामा की मृत्यु, शारीरिक कष्ट तथा स्वपराक्रम से धन लाभ प्राप्त होता है। सप्तम भाव में होने पर अनिष्ट फलों की प्राप्ति होती है, परंतु वृश्चिक राशि में हो तो शुभ होता है। अष्टम भाव होने पर पिता की मृत्यु, आर्थिक कष्ट तथा प्रतिकूल स्थितियां होती हैं। नवम भाव में होने पर परोपकार, धर्माचरण परंतु गृहस्थ संकट उत्पन्न होता है। दशम भाव में होने पर आरंभ में विघ्न, रुकावट परंतु बाद में व्यापार व्यवसाय में लाभ होता है। एकादश भाव में होने से भवन, भूमि, धन् मित्रता आदि का लाभ प्राप्त होता है। द्वादश भाव में होने से लोक-निन्दा, विदेश वास तथा धन क नाश आदि अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
विशेष— विंशोत्तरी महादशान्तर्गत जिस ग्रह की दशा हो, उसका फल समस्त दशा काल में एक जैसा नहीं होता। जब दशा काल में अन्य ग्रहों की अंतर्दशाएं होती हैं तो वे भी शुभाशुभ प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार प्राणदशाएं भी प्रत्यन्तर तथा सूक्ष्मान्तर तक अपने प्रभाव को प्रकट करती हैं। किसी भी ग्रह के दशा काल फल पर विचार करते समय उसकी प्रत्यन्तर्दशा, अन्तर्दशा, सूक्ष्मान्तर्दशा तथा प्राणदशा पर भी अवश्य विचार करना चाहिए। इसके अलावा वर्तमान गोचर ग्रह स्थिति पर भी ध्यान देना चाहिए। तभी वास्तविक फलित का ज्ञान संभव हो सकता है। ज्योतिष ग्रंथों में ग्रहों की अन्तर्दशाओं के फल का प्रभाव-उल्लेख तो होता है, परन्तु प्रत्यन्तर्दशाओं का फल बहुत सूक्ष्म रूप में पाया जाता है। इसका किसी प्रकार से कोई लाभ नहीं होता। प्राण और सूक्ष्म दशाओं के फल का उल्लेख नहीं मिलता, अतः इनके संबंध में ज्योतिषी को स्वयं अपने विवेक के आधार पर निर्णय करना चाहिए।
विंशोत्तरी महादशा के फलादेश का उल्लेख यहां किया गया है। फलादेश तथा अन्य महादशाओं के संबंध में जानकारी शेष सभी ग्रहों के माध्यम से करनी चाहिए। इन दशाओं के काल पर विचार करने के बाद ही व्यक्ति के जीवन में घटने वाली घटनाओं का बिलकुल ठीक-ठीक समय निर्धारित किया जाता है।


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