कल्कि-अवतार
हमारे धर्मशास्त्रों में भगवान कल्कि की दसवें अवतार के रुप में चर्चा है। कहा गया है कि ज्यों-ज्यों घोर कलियुग आता जाएगा, त्यों-त्यों दिनों-दिन धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु और बल का लोप होता जाएगा। कलियुग में जिसके पास धन होगा, उसी को लोग कुलीन, सदाचारी और सद्गुणी मानेंगे। जो जितना छल कपट कर सकेगा वह उतना ही व्यवहार-कुशल मा ना जाएगा। ब्राह्मण की पहचान उसके गुण-स्वभाव से नहीं यज्ञोपवीत से हुआ करेगी। जो जितना अधिक दम्भ-पाखण्ड करेगा, उसे उतना ही बड़ा साधु समझा जाएगा। धर्म का सेवन यश के लिए किया जाएगा।
सारी पृथ्वी दुष्टों का बोलबाला हो जाएगा। राजा होने का कोई नियम न रहेगा। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्रों में जो बली होगा, वही राजा बन बैठेगा। उस समय के नीच राजा अत्यन्त निर्दय एवं क्रूर होंगे। उनसे डरकर प्रजा पहाड़ों और जंगलों में भाग जाएगी।
उस समय भयंकर अकाल पड़ जाएगा। लोग भूख-प्यास तथा नाना प्रकार की चिन्ताओं से दुःखी रहेंगे। वे पत्तियों को खाकर पेट भरेंगे। मनुष्य चोरी, हिंसा आदि अनेक प्रकार के कुकर्मों से जीविका चलाने लगेंगे।
कलिकाल के दोष से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे होंगे। चारों वर्णों के लोग शूद्रों के समान हो जाएंगे। गौएं बकरियों की तरह छोटी-छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएंगी। वानप्रस्थी और संन्यासी आदि गृहस्थों की तरह रहने लगेंगे। लोग धर्मशास्त्रों की खिल्ली उड़ाएंगे। वेद-पुराण की निन्दा करेंगे। पूजा-पाठ को सिर्फ ढकोसला मानेंगे। धर्म में पाखण्ड की प्रधानता हो जाएगी। इस प्रकार कलियुग का अन्त होते-होते पृथ्वी पर हिंसा और जातीय संधर्ष बढ़ जाएगा। तब ऐसी स्थिति में धर्म की रक्षा करने के लिए स्वयं भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।
शास्त्र कहते हैं - कलियुग के अन्तिम दिनों में शम्भलग्राम में विष्णुयश नाम के एक श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार होगा। वे भगवान के परम भक्त होंगे। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे। वे देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर दुष्टों को तलवार के घाट उतारेंगे। वे पृथ्वी पर विलुप्त धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।
भगवान जब कल्कि के रुप में अवतार ग्रहण करेंगे, उसी समय सत्ययुग का प्रारम्भ हो जाएगा। प्रजा सुख-चैन से रहने लगेगी।
चराचर जगत के स्वामी भगवान कल्कि को हम सब नमस्कार करते हैं।
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