महादशाओं के प्रकार

महादशाओं के प्रकार ( रावण संहिता के अनुसार )

"कौन सी घटना जीवन में कब घटित होगी' अर्थात् जन्मकुंडली का कौन सा ग्रह किस कालावधि में अपना प्रभाव प्रकट करेगा? इसे जानने का सर्वमान्य तरीका ग्रहों की महादशा, उसकी अन्तर्दशा, प्रत्यन्तरदशा, सूक्ष्म दशा एवं प्राणदशा आदि पर विचार करना चाहिए । महादशाएं कई प्रकार की होती हैं- विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी, योगिनी आदि। कुल मिलाकर महादशाओं के 42 भेद कहे गए हैं, परंतु इन सबमें विंशोत्तरी तथा अष्टोत्तरी का ही अधिक प्रचलन है। विंशोत्तरी महादशा में मनुष्य की आयु 120 वर्ष तथा अष्टोत्तरी में 108 वर्ष मानकर ग्रहों की दशावधि का विभिन्न वर्षों में वर्गीकरण किया गया है। 'विंशोत्तरी' तथा 'अष्टोत्तरी' महादशा में क्रमशः 9 तथा 8 ग्रहों की दशाएं गिनी जाती हैं। 'विंशोत्तरी' महादशा का प्रारंभ 'सूर्य' की महादशा से माना जाता है, तत्पश्चात् क्रमशः चन्द्रमा, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध तथा केतु की दशाएं आती हैं जबकि अष्टोत्तरी महादशा में ग्रहों की दशा का क्रम सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शनि, गुरु, राहु तथा शुक्र होता है। इसमें केतु की दशा नहीं मानी जाती। विंशोत्तरी दशा का प्रचलन उत्तर भारत में तथा अष्टोत्तरी दशा का प्रचलन दक्षिण भारत में अधिक है। स्वरशास्त्र के मतानुसार जिस व्यक्ति का जन्म शुक्लपक्ष में हुआ हो, उसके संबंध में 'अष्टोत्तरी दशा' द्वारा तथा जिसका जन्म कृष्णपक्ष में हुआ हो, उसके सम्बंध में 'विंशोत्तरी दशा द्वारा विचार करना उपयुक्त रहता है।

• विंशोत्तरी दशा में सूर्य की दशा के 6 वर्ष, चन्द्रमा के 10 वर्ष, मंगल के 7 वर्ष, राहु के 18 वर्ष, गुरु के 16 वर्ष, शनि के 19 वर्ष, बुध के 17 वर्ष, केतु के 7 वर्ष तथा शुक्र के 20 वर्ष माने जाते हैं। इन सब ग्रहों की सम्मिलित अवधि को 'विंशोत्तरी महादशा काल' कहा जाता है। इस महादशा के दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा तथा प्राणदशा आदि भेद हैं। इन भेदों के अन्तर्गत सभी ग्रहों की दशाएं पूर्वोक्त क्रम से संचरण करती रहती हैं। यथा-सूर्य की दशा में पहली अन्तर्दशा सूर्य की, दूसरी चन्द्र की, तीसरी मंगल की, चौथी राहु की, पांचवीं गुरु की, छठी शनि की सातवीं बुध की, आठवीं केतु की तथा नौवीं शुक्र की होगी।

इसी प्रकार प्रत्येक ग्रह की दशा में पहली अन्तर्दशा उसी ग्रह की होती है, तदुपरांत पूर्वोक्त क्रम से अन्य ग्रहों की दशाएं आती हैं। प्रत्यन्तर्दशा में पहली अन्तर्दशा के अन्तर्गत उसी ग्रह की प्रत्यन्तर्दशा होती है। यथा - सूर्य की दशा में सूर्य का अन्तर तथा सूर्य के अंतर में पहला प्रत्यन्तर सूर्य का ही होगा, तदुपरान्त अन्य ग्रहों के प्रत्यन्तर चलेंगे। यही नियम सूक्ष्मदशा तथा प्राणदशा पर भी लागू होता है। विंशोत्तरी महादशा में किस ग्रह की महादशा जातक के जन्म समय से आरंभ हुई, इसका स्रोत जन्मकालीन नक्षत्र के आधार पर प्राप्त होता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रत्येक ग्रह की दशा आए ही यह आवश्यक नहीं है। ऐसे सौभाग्यशाली लोग कम ही होते हैं जो लगभग 120 वर्ष तक जीवित रहकर सभी ग्रहों की दशाओं का भोग कर पाते हों। महादशा, अन्तर्दशा आदि के साधन का ज्ञान इस विषय की ज्योतिष पुस्तकों से प्राप्त करना चाहिए। अष्टोत्तरी दशा में क्रमशः सूर्य 6 वर्ष, चन्द्रमा 15 वर्ष, मंगल 8 वर्ष, बुध 17 वर्ष, शनि 10 वर्ष, गुरु 19 वर्ष, राहु 12 वर्ष तथा शुक्र 21 वर्ष तक रहता है। इसमें भी अन्तर्दशाएं क्रमशः विचरण करती हैं। 'योगिनी दशा' में मंगला, पिंगला, धान्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा और संकटा - ये आठ दशाएं क्रमशः 1,2,3,4,5,6,7 तथा 8 वर्ष की मानी गई हैं। इन योगिनियों के स्वामी ग्रह इस प्रकार हैं- 'मंगला' का चन्द्र, 'पिंगला' का सूर्य, 'धान्या' का गुरु, 'भ्रामरी' का मंगल, 'भद्रिका' का बुध, 'उल्का' का शनि, 'सिद्धा' का शुक्र तथा 'संकटा' के पूर्वार्द्ध (1 से 4 वर्ष तक) का राहु एवं उत्तरार्द्ध (5 से 8 वर्ष तक) का 'केतु' माना गया है। योगिनी दशा की वर्ष संख्या को दशा दशा के वर्ष से परस्पर गुणा कर, 36 का भाग देने पर अन्तर्दशा के वर्षादि प्राप्त होते हैं। योगिनी दशा के अन्तर्गत आने वाली आठों दशाएं 36 वर्षों में ही पूरी हो जाती हैं। अतः कुछ ज्योतिषी जातक के जीवन का इस दशा का प्रभाव केवल 36 वर्ष की आयु तक ही मानते हैं, परन्तु दूसरे लोगों के मत में 36 वर्ष का भोग काल पूरा हो जाने के बाद इस दशा की पुनरावृत्ति होती रहती है। इन सभी दशाओं के साधन का ज्ञान ज्योतिष विषयक विभिन्न ग्रंथों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

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