राहु: चोरी का कारक

ज्योतिष में राहु को चोरी का कारक कहा गया है। अब यहां पर यह बिल्कुल नहीं समझना चाहिए कि जिसके लग्न में राहु है वह जातक चोरी करता होगा , या फिर जिसके पंचम भाव में राहु होगा उसकी संतान चोरी करेगी। यहां ज्योतिष शब्दों के अर्थ बहुत गहरे होते हैं। सब से पहली बात कि जन्म कुंडली तो पुराने किये कर्मो का लेखा जोखा है, जिसके आधार पर भविष्य के कर्मो की नींव बनाई जाती है, ना कि फलित किया जाता है। तो यहां राहु से तात्पर्य चोरी यानी किसी के हिस्से का खाया, किसी ने मजबूर होकर अपने कर्म का फल जातक को दिया, जिसका उधार जातक पर है। उदाहरण के लिए अगर किसी की जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु विराजमान है, चतुर्थ भाव माता का सुख। राहु को ज्योतिष में अज्ञात या दूषित भी कहा जाता है। तो चतुर्थ भाव राहु यानी पूर्व जन्म में जातक की माता अज्ञात थी, उसकी सगी माता नहीं थी, जातक का खून दूषित था, मतलब जातक उस परिवार की सगी संतान, उनका अपना खून नहीं रहा होगा, गोद लिया होगा। फिर भी उस जातक का अच्छे तरीके से लालन पालन हुआ, वो सब कुछ मिला जो एक सगी संतान को मिलना चाहिए। यह तो थी पूर्व जन्म की कहानी, अब असली बात शुरू होती है कि अब इस जन्म में जातक पर यह सब उधार है यानी जातक अपनी उस पूर्व जन्म की माता के प्रति कर्ज़दार है।
ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण सूत्र बताया गया है कि राहु की शांति शनि से होती है। अब आप इस बात को जोड़ें कि राहु अगर कर्ज़दार बनाता है यानी अब आपको उस रिश्ते के प्रति कर्ज़ मुक्त होने के लिए अपनी तरफ से प्रयास और कर्म करने की ज़रूरत है। और ज्योतिष अनुसार कर्म का कारक ही शनि है। इसी लिए ज्योतिष का महत्वपूर्ण सूत्र यहां सिद्ध होता है कि राहु की शांति शनि से होती है। यानी अब जिसके चतुर्थ भाव में राहु है उस जातक को किसी जरूरतमंद महिला को अपनी माता के समान समझना चाहिए, और उस महिला से उसके पुत्र की तरह व्यवहार करते हुए, सारी जरूरतों का ख्याल रखना चाहिए।

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