हमें जो संतान होती हैं। वह हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। इस जन्म में हमारी संतान हमसे कुछ लेने आती है, या हमें कुछ देने आती है।
संतान योग देखने के लिए जन्म कुंडली का पंचम भाव, पंचमेश और संतान प्राप्ति का कारक बृहस्पति को देखना चाहिए। पंचम भाव से कुंडली में संतान के जन्म का वायदा मिलता है।
पंचम भाव शुभ हो, पंचम भाव शुभ कर्तरी में हो, पंचम भाव में पंचमेश या लग्नेश बैठे हैं, पंचम भाव को लग्नेश, पंचमेश या बृहस्पति देख रहे हो। तो हम यह मानते हैं कि पंचम भाव सही उम्र,सही समय में संतान देने का वायदा पूरा करता है।
यदि पंचम भाव में कोई पाप ग्रह हो यह पीड़ा दिख रही हो तब हम बीज स्फुट और क्षेत्र स्फूट की गणना करके, बीज स्फुट और क्षेत्र स्फूट को जन्म कुंडली, नवांश कुंडली, और सप्तांश कुंडली में देखेंगे। कम से कम किन्ही दो वर्ग कुंडली में बीज स्फुट विषम राशि में 6,8,12 भाव को छोड़ कर होना चाहिए। इसी तरह क्षेत्र स्फूट कम से कम किन्हीं दो वर्ग कुंडली सम राशियों में 6, 8, 12 भाव को छोड़कर होना चाहिए।
संतान का वायदा मिलने पर हम संतान के समय की गणना कर सकते हैं।
*संतान के जन्म समय की गणना किस प्रकार करते हैं*
*महादशा*
सर्वप्रथम हम महादशा देखेंगे महादशा में लग्न,लग्नेश, पंचम,पंचमेश, नवम या नवमेश की महादशा होना चाहिए।
*अंतर्दशा*
अंतर्दशा कार्यपालक है और उसकी जिम्मेदारी परिणाम देने की बनती है। अतः अंतर्दशा का निरीक्षण जन्म कुंडली और नवांश कुंडली में किया जाता है। लग्न,लग्नेश, पंचम, पंचमेश, नवम या नवमेश की अंतर्दशा संतान देने में सक्षम होती है।
*गोचर*
दशा अंतर्दशा का वायदा मिलने पर संतान के जन्म का समय निकालने के लिए शनी बृहस्पति और चंद्रमा का गोचर बहुत महत्वपूर्ण है किसी भी संतान का जन्म जब होता है तो शनी 9 माह पहले, बृहस्पति 7 माह पहले, चंद्रमा 72 घंटे पहले जच्चा ( संतान की मां ) की कुंडली में पंचम, पंचमेश, सप्तम, सप्तमेश, नवम या नवमेश को प्रभावित करते हैं।
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