रामतत्व की महिमा

||| रामतत्व की महिमा |||  
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  एक दिन पार्वतीजी ने महादेवजी से पूछा :- "आप हरदम क्या जपते रहते हैं ?"
उत्तर में महादेवजी विष्णुसहस्रनाम कह गये । अन्त में पार्वतीजी ने कहा : "ये तो अपने हजार नाम कह दिये । इतना सारा जपना तो सामान्य मनुष्य के लिए असम्भव है । कोई एक नाम कहिए जो सहस्रों नामों के बराबर हो और उनके स्थान में जपा जाये ।"
तब महादेवजी बोले :-
" राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनामतत्तुल्यम्: रामनाम वरानने ।।"
"हे सुमुखि ! रामनाम विष्णुसहस्रनाम के तुल्य है । मै सर्वदा 'राम... राम... राम... ' इस प्रकार मनोरम राम-राम में ही रमन करता हूँ ।"
ऐसी बात नही है कि अवधपुरी में राजा दशरथ के घर श्रीराम अवतरित हुए तब से ही लोग श्रीराम का भजन करते हैं । नहीं नहीं । दिलीप राजा , रघु राजा एवं दशरथ के पिता अज राजा भी श्रीराम का ही भजन करते थे क्योंकि श्रीराम केवल दशरथ के पुत्र ही नही हैं बल्कि रोम-रोम में जो रम रहा है उसका ही नाम है राम ।
रमन्ते योगिनः यस्मिन् स राम:।
जिसमें योगी लोगों का मन रमन करता है उसीको कहते है राम ।
किसी महात्मा ने कहा :-
एक राम घट-घट में बोले ।
एक राम दशरथ घर डोले ।।
एक राम का सकल पसारा।
एक राम है सबसे न्यारा ।।
तब शिष्य ने कहा : "गुरुजी ! आपके कथनानुसार तो चार राम हुए । ऐसे कैसे ?"
गुरु : "थोड़ी साधना कर, जप-ध्यानादी कर, फिर समझ मे आ जायेगा ।"
साधना करके शिष्य की बुद्धि सुक्ष्म हुई, तब गुरु ने कहा :-
जीव राम घट-घट में बोले।
ईश राम दशरथ घर डोले ।।
बिंदु राम का सकल पसारा।
ब्रम्ह राम है सबसे न्यारा ।।
शिष्य बोला : "गुरुदेव ! जीव, ईश, बिंदु और ब्रम्ह इस प्रकार भी तो राम चार ही हुए न ?"
गुरु ने देखा कि साधनादि करके इसकी मति थोड़ी सुक्ष्म तो हुई है किन्तु अभी तक चार राम दिख रहे हैं । गुरु ने करुणा करके समझाया कि : "वत्स ! देख, घड़े में आया हुआ आकाश, मठ में आया हुआ आकाश, मेघ में आया हुआ आकाश और उससे अलग व्यापक आकाश, ये चार दिखते हैं । अगर तीनों उपाधियों को घट, मठ और मेघ को हटा दो तो चारों में आकाश तो एक का एक है । इसी प्रकार......
वही राम घट-घट में बोले ।
वही राम दशरथ घर डोले ।।
उसी राम का सकल पसारा ।
वही राम है सबसे न्यारा ।।
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----------------कौन राम ? आशा ! पाल ! साईं ! देव ! रहीम ! आदि-आदि ! कौन ? 
 --------------- रमन्ते योगिनः यस्मिन् स राम: ! अर्थात आत्मा -राम ! आत्मा परम है इसलिए इसे ही परमात्मा कहते है ,ये ही हममे व सम्पूर्ण चराचर में आत्म रूप में विराज मान है ,विश्व के अणु -रेणु में व्याप्त है इसलिए विष्णु भी कहते है ! नाम ,रूप भिन्न है पर सबमे वो एक ही है,जो शक्ति रूप में व्याप्त है ! इनके ही चेतना से हम चैतन्य - प्रकाशित - सुंदर -सुगन्धित है ! ये शरीर ही देवालय है व इसमे ही आत्म देव अर्थात राम=आत्माराम ही विराजमान है ! इसका बोध होना ही ज्ञान की पूर्णता है,यही मनुष्य जन्म का मूल उद्देश्य है!--
 ------------------पंच तत्व के शरीर को नही पंचतत्व के शरीर को धारण करने वाले तत्व [परमात्मा ] अर्थात आत्मा राम को भजना है ! देह को नही देही [आत्माराम ] =हमारे शरीर व पुरे अखिल ब्रम्हांड व सम्पूर्ण चराचर को धारण करने वाला शक्ति [तत्व] अर्थात परमात्मा -अंतरात्मा को जपना है ! वो निराकार है , वो ज्योति स्वरुप है -आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती ! यही राम [ईश्वर ] है ! जिन्हें इनका बोध हो वह सुगुण रूप में राम [ ईश्वर ]है ! यही बीच-बीच में सगुण रूप में भी प्रगट होते है ! जैसे त्रेता में राम रूप में ,द्वापर में कृष्ण रूप में ,वास्तव में यही सद्गुरु है सद =आत्मा अर्थात आत्मा ही सद्गुरु है जो हममे सबसे निकट हमारे अंतरात्मा है ! ----------- ----
 ---------------हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रगट होई मै जाना -------------------------------सीया राम मय सब जग जाना ---गोस्वामी तुलसीदास ---------
 ---------------अपने सहित हर रूप में ईश्वर दर्शन यही यथार्थ दर्शन है ! - व इसी राम को जपना है !-
 --------------और ये है कबीर ,तुलसी ,सुरदास ,मीरा ,भगवान महादेव के राम ! राम के रामेश्वरम ! सर्वं ईश्वरम --

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