आज सुबह बेटा बोला
पापा, मैं बङा होकर अमेरिका जाऊंगा
मैंनें होकर हतप्रभ
पूछा,
क्यों बेटा, अमेरिका क्यों,
हिन्दुस्तान में क्या नहीं है,
बेटा बोला,
पिताजी,
हमारे पास विज्ञान की विरासत नहीं हैं
ज्ञान को दें न्याय, वो अदालत नहीं हैं
हमनें आखिर दुनिया को दिया क्या है"
ये ताना क्या हमपर जलालत नहीं है......
सुनकर ये ब्यान,
मैं रह गया हैरान,
बोला पकङ कर उसके कान,
ध्यान से सून मेरी जान.…..
ये जो धरती पर चलते हैं विमान
कब तक का है इनका, दूसरे ग्रहों का प्लान
सीधे तो तुम उङा लेते हो
क्या बैक गियर में चलाने का है तुम्हें ज्ञान
त्रितल रथ, विद्युत-रथ और त्रिचक्र रथ
होते थे हमारे तीन प्रकार के विमान
वैमानिक प्रकरणं को पढ कर देख
ना केवल कृतक, बल्कि तांत्रिक ओ मान्त्रिक वायुयान,
थे हमारी उज्ज्वल पहचान
बापूजी तलपड़े को भूले हुऐ,
राइट ब्रदर्स के मानस पूत्रों
क्या तूमने सूना है महर्षि भारद्वाज का नाम
जब तेरा अमेरिका, घूमता था नंगा
तब इन्होंने बना दिये थे,
आठ प्रकार के विमान
यंत्र-सर्वस्व ग्रंथ और अंशुबोधिनी अनुसार
शक्तियुद्गम, भूतवाह, शिखोद्गम, अंशुवाह, तारामुख,
मणिवाह, मरुत्सखा और धूमयान
होते थे इनके आठ नाम
और ये कुतर्क मत देना,
कि सब है कपोल-कल्पित
क्योंकि
इतनी कल्पना भी नहीं होती, बिना अनुसंधान
अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन तो है तुम्हें याद
पर
ये रहस्य तो कब का उजागर कर चूके थे
परमाणुशास्त्र के जनक, हमारे आचार्य कणाद
और तूं तो जानता भी ना होगा
कि इसीलिए,
सुक्ष्मतम को "कण" कहते हैं आज
"वैशेषिकसूत्र" ग्रंथ था इनका ही प्रसाद
रावणभाष्य ओ भारद्वाजवृत्ति,
थे इसके दो भाग
लेकिन हाय लगे उस तुर्क लुटेरे बख्तियार खिलजी को
जो, नालंदा में, लगा गया था आग
"बाॅयनरी मॉलिक्यूल" और "कन्सर्वेशन आफ मैटर" तक ही,
पहुंचा है तेरा विज्ञान
पर कणाद तो
सूक्ष्मतम में भी, बता गये थे ब्रह्मांड
तेरे डाक्टर तो अब जाकर
समझे हैं सर्जरी, सौ ठोकर खाकर
खोल जरा तूं "चरकसंहिता"
फिर बोल जरा तूं नजर मिलाकर
और जरा ये तो बता
कि
फादर आॅफ सर्जरी
और
फादर आॅफ एनेस्थीसिया कौन है
क्या कहा, जरा जोर से बोल
हां........ महर्षि सुश्रुत नाम था उनका
जो हो नामालूम तो सून
देव वैद्य श्री धन्वन्तरि थे इनके गुरु
सुश्रुत संहिता लिख
इन्होंने ही की थी, शल्य चिकित्सा शुरू
300 शल्य चिकित्सा का किया वर्णन
आज भी विश्व इन्हें करता है नमन
पश्चिम क्या नापेगा,
हमारे ज्ञानचक्षुओं का परिक्षेत्र
ऋग्वेद, शतपथ ब्राहृण ने स्पष्ट लिखा है
खगोल विज्ञान को वेदों का नेत्र
ऋषि गृत्स्मद ने कब के खोल दिये थे,
चन्द्रमा के गर्भ पर होने वाले परिणाम
ऋषि दीर्घतमस् ने सूर्य को पढने में होकर अंधे बताया,
कि, सूर्य किरणों के कारण है चन्द्रमा प्रकाशमान
नक्षत्र, चान्द्रमास, सौरमास, मल मास,
ऋतु परिवर्तन, उत्तरायन, दक्षिणायन,
आकाशचक्र, सूर्य की महिमा, कल्प का माप
क्या सम्भव है,
ग्रहिय गतियों के ज्ञान बगैर
भास्कराचार्यजी तो कब के
‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में गुरुत्वाकर्षण समझा गये
पर तुम कहते हो तो
न्यूटन का सेव खा लेते हैं खैर
चल ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी में चल
महान गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ
वराहमिहिर से कर तूं परिचय
हजारों वर्षों पहले लिखी पंचसिद्धान्तिका
और अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड कर दिया तय
समय मापक घट यन्त्र कहो या,
इंद्रप्रस्थ का लौहस्तम्भ
चंद्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में थे ये
जग में त्रिकोणमिती का किया आरम्भ
फलित ज्योतिष के थे महाज्ञाता
बृहत्संहिता का दिया उपहार
एक बार जो इन्हें समझ ले
मिले वास्तुविद्या फिर अपरम्पार
'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल' का जो सूना हो नाम
तो हो दंडवत कर नागार्जुन को प्रणाम
पारस पत्थर नहीं केवल कल्पना
नागार्जुन ने इसे दिया था अंजाम
'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और 'योगाष्टक' के रचियता
इनका सदा आभारी चिकित्सा विज्ञान
ऋषि शौनक के संस्कारों का तो इतना था प्रचार
दस हजार शिष्यों का इक गुरुकुल में होता था संस्कार
कैंसर कहो या कर्करोग,
जिसका पश्चिम ने न पाया पार
ऋषि पतंजलि के योगशास्त्र में देखो, है सरल सुगम उपचार
किया प्रवर्तन 'सांख्य दर्शन' का,
थे वे कपिल मुनि महायोग
दर्शन शास्त्र के प्रथम रचियता, थे महाज्ञानी ये लोग
विश्वामित्र क्षत्रिय की कामधेनु गाय बताऊं तूझे
कि उनके बनाए प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रकार
श्री वेदव्यास जी का तपोबल समझाऊँ
या उनका कौरवों की क्लोनिंग का चमत्कार
गर्ग मुनि के नक्षत्र ज्ञान की, थी अद्भूत महातरंग
कि महाभारत से पहले जिसने, दिया बता ये प्रसंग
तेरहवें दिन होगी अमावस,
तो चौदहवें दिन पूर्णिमा करेगी चंद्रग्रहण का संग
तिथी का ये क्षय, करेगा महाविनाश
होगी ये धरा लाल खून से, चहूं ओर दिखेंगे अंग
अब हतप्रभता,
मूझ से,
मेरे बेटे में स्थानांतरित हो चूकी थी
बङी बङी आंखें कर के बोला
पिताश्री,
जब हम विरासत के इतने धनी हैं
तो ये सब पाठ्यक्रम में क्यों नहीं है
क्यों हमें इतिहास में नीचा दिखाया जाता है
और
हर पेटेंट पश्चिम का बताया जाता है
तब,
मैंने उसे प्यार से बैठाया
और खोल कर समझाया
कि, जब हजारों सालों के हमलावरी कुठाराघात
इस महान विरासत की वजह से हमें तोङ ना पाए
तो अंग्रेज़ मैकाले को परिदृश्य में लाये
और काट दिया गया
हमारी स्वपोषित जङों को
जिनसे हम पाते थे अमूर्त संजीवनी
और फलस्वरूप
अब
विद्यालयों में
प्रवेश तो स्वतंत्र हिंदुस्तानी लेते हैं
लेकिन
बाहर अंग्रेजो के गुलाम आते हैं
ये सब बोलकर
जब मैं अपलक, निर्विकार सा
आकाश को ताक रहा था
तो
मेरे पैरों पर आ गिरे
मेरे बेटे के कुछ अश्रु बिंदु
और शायद
आंखों में चढा पश्चिमी मैल भी..........
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