लक्ष्मी ने राजा बलि से क्या माँगा ?

भक्त प्रह्लाद के पौत्र बलि यज्ञ कर रहे थे तभी उनकी यज्ञशाला में नारायण प्रभु (विष्णु जी ) का वामन के रूप में आगमन हुआ। वामन बलि के द्वार पर खड़े हो कर दान की याचना करने लगे। तब बलि ने वहाँ आकर वामन से मन चाहा दान माँगने को कहा तब वामन ने तीन पग भूमि मांगी। बलि ने संकल्प कर के तीन पग भूमि का दान किया। अब वामन ने तुरंत अपना रूप वामन से विराट किया और पहले चरण में नीचे के लोक और दूसरे चरण में ऊपर के सारे लोक नाप लिए इस तरह से वामन ने दो पग में सारे ब्रह्माण्ड को नाप लिया और बलि से तीसरा पग रखने के लिए स्थान माँगने लगे। तब बलि ने अपने शिर पर तीसरा पग रखने को कहा! वामन ने तीसरा पैर बलि के सिर पर रखा।
वामन बलि के इस भाव पर प्रसन्न हुए और बलि को आने वाले मन्वन्तर में इंद्र बनने का आशीर्वाद दिया पर तब तक बलि को सुतल लोग में वास करने को कहा। वामन ने बलि से कहा मै तुम्हारे दान देने की प्रवित्ति से बहुत प्रसन्न हूँ आज से तुम्हारे दान देने की प्रवित्ति के लिए इस दान का नाम “बलिदान” के नाम से जाना जायगा साथ ही बलि से मांगो क्या माँगना चाहते हो कहकर वर माँगने को कहा। तब बाली ने कहा प्रभु अभी अभी मैंने ही आप को ये सम्पूर्ण सृष्टि दान की है और मै दान की हुई वस्तु वापस नहीं ले सकता। हे प्रभु आप अगर मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मै आप से आप को ही मांगता हूँ। वामन ने बलि से कहा-- राजा बलि तुम अगले मन्वन्तर के आने तक सुतल लोक में वास करना और मैं तुम्हारा द्वारपाल बनकर नित्य तुम्हारे साथ रहूँगा वामन बलि को ले कर सुतल लोक चले गए।
नारद जी सारा वृत्तांत सुनाने लक्ष्मी जी के पास पहुचे और कहने लगे की हे माता आज से आप संन्यास ले लो क्योकि अब आप के पति विष्णु जी आपके पास नहीं आएँगे । लक्ष्मी जी नारद जी की रहस्य्मयी बातो को सुनकर नारद से कहा की स्पष्ट बात कीजिये तब नारद जी ने लक्ष्मी जी को सारा व्रततणत सुनाया और कहा की अबसे वे “राजा बलि के यहाँ द्वारपाल हैं ”। तब माता लक्ष्मी ने इस समस्या का उपाय पूछा ! तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को संकेत दिया की बलि के कोई बहन नहीं है।

माता लक्ष्मी नारद जी के संकेत को समझ गई और सुतल लोक में राजा बाली के पास एक सामान्य स्त्री का रूप धारण कर पहुँच गई। राजा बलि ने देखा की एक स्त्री हमारे द्वार पर कुछ माँगने आयी है और उस स्त्री से पूछा की आप को क्या चाहिए निःसंकोच कहिये। तब माता लक्ष्मी ने कहा की मेरे कोई भाई नहीं है मुझे भी अन्य स्त्रियो की भाँती अपने मायके जाने की इच्छा होती है पर मैं कहा जाऊ और रोने लगी। तब बलि ने कहा मेरी कोई बहन नहीं है तो आज से हम दोनों भाई बहन हुए। तभी माता लक्ष्मी ने बलि को रक्षासूत्र बाँधा और बलि ने अपनी बहन स्वीकार किया और कुछ माँगने को कहा तब माता लक्ष्मी ने कहा भैया मेरे पास किसी बात की कमी नहीं है बस तुम अपने द्वार पर खड़े इस द्वारपाल को मुक्त कर दो तब राज बलि ने माता लक्ष्मी से पूछा की बहन तुम इस द्वारपाल को मुक्त क्यों करवाना चाहती हो ! तब भगवान् लक्ष्मी-नारायण चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गए। राजा बलि ने जब यह बात जनि कि उन्होंने जिसे अपनी बहन बनाया है वो साक्षात् माता लक्ष्मी है तब वो माता लक्ष्मी से क्षमा माँगने लगे। तब माता लक्ष्मी ने कहा कि इसमें आप का कोई दोष नहीं है मैं ही यहाँ अपने पति को वापस ले जाने आयी थी। फिर माता लक्ष्मी अपने पति को बलि से मुक्त कराकर बैकुंठ ले गयी।

विशेष ,,,,,जहाँ नारायण (विष्णु जी देव है देव का एक कर्म है परोपकार ) वहां लक्ष्मी स्वयं ही चल कर आ जाती है। यानि परोपकारी अथवा दान देने वाले ( नारायण राजा बलि के घर में थे ) के घर लक्ष्मी जी नारायण के साथ आती है उन्ही को सुखी करती है। जहाँ नारायण की सेवा होती है वह लक्ष्मी बिना आमंत्रण के आ जाती है। जिस प्रकार बलि के घर में नारायण विराजमान थे तो माता लक्ष्मी स्वयं चलकर वहाँ आ गयी। बलि ने अपने जीवन में दान की प्रवृत्ति को अपना कर बहुत सत्कर्म किये इस लिए नारायण उनको प्राप्त हुए और नारायण के आते ही लक्ष्मी भी वह स्वयं चल कर आ गयी। इसलिए-
दान जैसी प्रवृति को अपने अंदर महतत्व में उत्पन्न करे ! ध्यान रहे दान नेक कमाई से ही फलीभूत होता है भ्रष्टाचारी की कमाई निष्फल ही रहती है ! संतोषी जीवन अपनाओ जो आपकी सादगी, अस्तेय एवं अपरिग्रह की प्रवृति से ही संभव है! प्रभु में श्रद्धा एवं भक्ति , गौमाता को पुण्यात्मा मानकर उसकी सेवा , एवं शुद्ध शाकाहार का सेवन एवं करुणा को चुनो ! एक सत्कर्म पूरा हो तो दूसरा सत्कर्म करो दूसरा पूरा हो तो तीसरा करो।
जो हमेशा नेक सोच के साथ सत्कर्म करते है लक्ष्मी नारायण उन्ही को प्राप्त होते है।
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

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