मौर्य वंश

(विशेष दे॰ 'चंद्रगुप्त') बौद्ध ग्रंथों में 'चंद्रगुप्त' को 'मोरिय' वंश का लिखा है और उसे शुद्ध क्षत्रिय माना है । मौर्य वंश के शुद्ध क्षत्रिय होने की पुष्टि दिव्यावदान में अशोक के मुँह से कहलाए हुए 'दोव अहं क्षत्रियः कथं पलांडु परिभक्षयामि' से भौ होता है, जिसमें अशोक कहता है—'दीव, मैं क्षत्रिय हूँ; मैं प्याज कैस खाऊँ । 'मुरा' शब्द में 'णय' प्रत्यय लगाने से 'मौय' शब्द बहुत खींच खाच से बनता है; पर पालि भाषा में 'मोरिया' शब्द आया है, जिसकी सिद्धि पालि व्याकरण के अनुसार 'मोर' शब्द सो जो 'मयूर' का पालि रूप है, की गई है । यह समझकर जैनियों ने चंद्रगुप्त की माता को नंद के मयूर- पालकों के सरदार की कन्या लिखा है । बुद्धघोष के विनयपिंटक की आत्मकथा का टीका और महावंश का टीका में चंद्रगुप्त को मोरिय नगर के राजा की रानी का पुत्र लिखा है । यह मोरिय नगर हिंदूकुश और चित्राल के मध्य उज्जानक (सं॰ उद्यान) देश में था । महापरिनिर्वाण सुत्र में लिखा है कि जिस समय महात्मा गौतम बुद्ध का कुशीनगर में निर्वाण हुआ था और मल्लराज ने उनकी अंत्येष्टि के अनंतर उनके भस्म और अस्थि को कुशीनगर में चैत्य बनाकर प्रतिष्ठित करना चाहा था, उस समय कपिलवस्तु, राजगृह आदि के राजाओं ने महात्मा बुद्धदेव के धातु को बाँटकर अपने अपने भाग को अपने अपने देश में चैत्य बनाकर रखने के उद्देश्य से कुशीनगर पर चढ़ाई को थी, जिससे महान् उपद्रव की संभावना देख महात्मा द्रोण ने महात्मा बुद्धदेव के धातु को विभक्त कर प्रत्येक को कुछ कुछ भाग देकर झगड़ा शात किया था । उन राजाओं में, जिन्हें महात्मा बुद्धदेव की चिता के भस्म का भाग दिया गया था, पिप्पलीकानन के मोरिया राजा का भी उल्लेख महापरिनिर्वाण सूत्र में है । इससे विदित होता है कि महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण काल में पिप्पलीकानन में मोरिय क्षत्रियों का निवास था । इससे मोरिय राजवंश की सत्ता का पता चंद्रगुप्त से बहुत पहले तक चलता है । ये मोरिय लोग शाक्य, लिच्छवि, मल्ल आदि वंश के क्षत्रियों के संबंधी थे । जान पड़ता है, ये लोग लोग भागकर नेपाल की तराई में चले आए और वहाँ के लोगों को अपने अधिकार में करके इन्होंने छोटे छोटे अनेक राज्य स्थापित किए । महावंश के टीकाकर और दिव्याबदान के टीकाकारों का कथन है कि चंद्रगुप्त मोरिय नगर के राजा का पुत्र था । जब मोरिय के राजा का ध्वंस हुआ तब उसकी गर्भवती रानी अपने भाई के साथ बड़ी कठिनता से भागकर पुष्पपुर चली आई और वहीं चंद्रगुप्त का जन्म हुआ । यह चंद्रगुप्त गौए चराया करता था । इसे होनेपर देख चाणक्य- जी अपने आश्रम पर लाए और उपनयन कर अपने साथ तक्षशिला ले गए । जब सिकंदर ने पंजाब पर आक्रमण किया, तब तक्षशिला के ध्वंस होने पर चंद्रगुप्त आचार्य चाणक्य के साथ सिकंदर के शिबिर में था । वील साहब का कथन है कि मोरिय नगर उज्जानक प्रदेश में था, जो हिंदूकुश और चित्राल के मध्य में था । इन सब बातों को देखते हुए जान पड़ता है, जिस प्रकार निस्विश से लिच्छवि, शक से शाक्य आदि राजवंशों के नाम पड़े, उसी प्रकार मोरिय नगर के प्रथम अधिवासी होने के कारण मौर्य राजवंश की भी नाम रखा गया; चंद्रगुप्त के अनतर अशोक मौर्य वंश का सबसे प्रसिद्ध सम्राट हुआ । मौर्य साम्राज्य का ध्वंस शुंगों ने किया । पर विक्रम की आठवी शताब्दी तक इधर उधर मौर्यों के छोटे छोटे राज्यों का पता लगता है । ऐसा प्रसिद्ध है, और जैन ग्रंथों में भी लिखा है कि चितौड़ का गढ़ मौर्य या मोरी राजा चित्रांग ने बनवाया था ।

मोर्य वंश से जुडी भ्रांतियों का तर्कपूर्ण खण्डन टीम राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास द्वारा, जरूर पढ़ें और अधिक से अधिक शेयर भी करें।।

मौर्यो के रघुवंशी क्षत्रिय होने के प्रमाण--------

महात्मा बुध का वंश शाक्य गौतम वंश था जो सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।कौशल नरेश प्रसेनजित के पुत्र विभग्ग ने शाक्य क्षत्रियो पर हमला किया उसके बाद इनकी एक शाखा पिप्लिवन में जाकर रहने लगी। वहां मोर पक्षी की अधिकता के कारण मोरिय कहलाने लगी।

बौद्ध रचनाओं में कहा गया है कि ‘नंदिन’(नंदवंश) के कुल का कोई पता नहीं चलता (अनात कुल) और चंद्रगुप्त को असंदिग्ध रूप से अभिजात कुल का बताया गया है।

चंद्रगुप्त के बारे में कहा गया है कि वह मोरिय नामक क्षत्रिय जाति की संतान था; मोरिय जाति शाक्यों की उस उच्च तथा पवित्र जाति की एक शाखा थी, जिसमें महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। कथा के अनुसार, जब अत्याचारी कोसल नरेश विडूडभ ने शाक्यों पर आक्रमण किया तब मोरिय अपनी मूल बिरादरी से अलग हो गए और उन्होंने हिमालय के एक सुरक्षित स्थान में जाकर शरण ली। यह प्रदेश मोरों के लिए प्रसिद्ध था, जिस कारण वहाँ आकर बस जाने वाले ये लोग मोरिय कहलाने लगे, जिनका अर्थ है मोरों के स्थान के निवासी। मोरिय शब्द ‘मोर’ से निकला है, जो संस्कृत के मयूर शब्द का पालि पर्याय है।

एक और कहानी भी है जिसमें मोरिय नगर नामक एक स्थान का उल्लेख मिलता है। इस शहर का नाम मोरिय नगर इसलिए रखा गया था कि वहाँ की इमारतें मोर की गर्दन के रंग की ईंटों की बनी हुई थीं। जिन शाक्य गौतम क्षत्रियों ने इस नगर का निर्माण किया था, वे मोरिय कहलाए।

महाबोधिवंस में कहा गया है कि ‘कुमार’ चंद्रगुप्त, जिसका जन्म राजाओं के कुल में हुआ था (नरिंद-कुलसंभव), जो मोरिय नगर का निवासी था, जिसका निर्माण साक्यपुत्तों ने किया था, चाणक्य नामक ब्राह्मण (द्विज) की सहायता से पाटलिपुत्र का राजा बना। महाबोधिवंस में यह भी कहा गया है कि ‘चंद्रगुप्त का जन्म क्षत्रियों के मोरिय नामक वंश में’ हुआ था (मोरियनं खत्तियनं वंसे जातं)। बौद्धों के दीघ निकाय नामक ग्रन्थ में पिप्पलिवन में रहने वाले मोरिय नामक एक क्षत्रिय वंश का उल्लेख मिलता है। दिव्यावदान में बिन्दुसार (चंद्रगुप्त के पुत्र) के बारे में कहा गया है कि उसका क्षत्रिय राजा के रूप में विधिवत अभिषेक हुआ था (क्षत्रिय-मूर्धाभिषिक्त) और अशोक (चंद्रगुप्त के पौत्र) को क्षत्रिय कहा गया है।

मौर्यो के 1000 हजार साल बाद विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस ग्रन्थ लिखा।जिसमे चन्द्रगुप्त को वृषल लिखा। वर्षल का अर्थ आज तक कोई सही सही नही बता पाया पर हो सकता है जो अभिजात्य न हो। चन्द्रगुप्त क्षत्रिय था पर अभिजात्य नही था एक छोटे से गांव के मुखिया का पुत्र था। अब इस ग्रन्थ को लिखने के भी 700 साल बाद यानि अब से सिर्फ 300 साल पहले किसी ढुंढिराज ने इस पर एक टीका लिखी जिसमे मनगढंत कहानी लिखकर उसे शूद्र बना दिया। यही से यह गफलत फैली।

जबकि हजारो साल पुराने भविष्य पुराण में लिखा है कि मौर्यो ने विष्णुगुप्त ब्राह्मण की मदद से नन्दवंशी शूद्रो का शासन समाप्त कर पुन क्षत्रियो की प्रतिष्ठा स्थापित की।

दो हजार साल पुराने बौद्ध और जैन ग्रन्थ और पुराण जो पण्डो ने लिखे उन सबमे मौर्यो को क्षत्रिय लिखा है। 1300 साल पुराने जैन ग्रन्थ कुमारपाल प्रबन्ध में चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी क्षत्रिय लिखा है।

महापरिनिव्वानसुत में लिखा है कि महात्मा बुद्ध के देहावसान के समय सबसे बाद मे पिप्पलिवन के मौर्य आए ,उन्होंने भी खुद को शाक्य वंशी गौतम क्षत्रिय बताकर बुद्ध के शरीर के अवशेष मांगे,

एक पुराण के अनुसार इच्छवाकु वंशी मान्धाता के अनुज मांधात्री से मौर्य वंश की उतपत्ति हुई है।

इतने प्रमाण होने और आज भी राजपूतो में मौर्य वंश का प्रचलन होने के बावजूद सिर्फ 200-300 साल पुराने ग्रन्थ के आधार पर कुछ मूर्ख मौर्यो को शूद्र घोषित कर देते हैं।

ये वो मूर्ख हैं जिन्हें सही इतिहास की जानकारी नही है और ये पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुराई मुराव शूद्रों को (जो पिछले 50 सालो से अब मौर्य लिखने लगे)ही असली मौर्य कुशवाहा शाक्य समझ लेते हैं।

सबने मौखिक सुनकर रट लिया कि पुराणों में मौर्यो को शूद्र लिखा है पर किस पुराण में और किस पृष्ठ पर ये नही देखा। हर ऑथेंटिक पुराण में मौर्य को क्षत्रिय सत्ता दोबारा स्थापित करने वाला वंश लिखा है वायु पुराण विष्णु पुराण भागवत पुराण मत्स्य पुराण सबमें मौर्य वंश को सूर्यवँशी क्षत्रिय लिखा है।।

मत्स्य पुराण के अध्याय 272 में यह कहा गया है की दस मौर्य भारत पर शासन करेंगे और जिनकी जगह शुंगों द्वारा ली जाएगी और शतधन्व इन दस में से पहला मौरिया(मौर्य) होगा।

विष्णु पुराण की पुस्तक चार, अध्याय 4 में यह कहा गया है की "सूर्य वंश में मरू नाम का एक राजा था जो अपनी योग साधना की शक्ति से अभी तक हिमालय में एक कलाप नाम के गाँव में रह रहा होगा" और जो "भविष्य में क्षत्रिय जाती की सूर्य वंश में पुनर्स्थापना करने वाला होगा" मतलब कई हजारो वर्ष बाद।

इसी पुराण के एक दुसरे भाग पुस्तक चार, अध्याय 24 में यह कहा गया है की "नन्द वंश की समाप्ति के बाद मौर्यो का पृथ्वी पर अधिकार होगा, क्योंकि कौटिल्य राजगद्दी पर चन्द्रगुप्त को बैठाएगा।"

कर्नल टॉड मोरया या मौर्या को मोरी का विकृत रूप मानते थे जो वर्तमान में एक राजपूत वंश का नाम है।

महावंश पर लिखी गई एक टीका के अनुसार मोरी नगर के क्षत्रिय राजकुमारों को मौर्या कहा गया।

संस्कृत के विद्वान् वाचस्पति के कलाप गाँव को हिमालय के उत्तर में होना मानते हैं-मतलब तिब्बत में। ये ही बात भागवत के अध्याय 12 में भी कही गई है. "वायु पुराण यह कहते हुए प्रतीत होता है की वो(मारू) आने वाले उन्नीसवें युग में क्षत्रियो की पुनर्स्थापना करेगा।" (खण्ड 3, पृष्ठ 325) विष्णु पुराण की पुस्तक तीन के अध्याय छः में एक कूथुमि नाम के ऋषि का वर्णन है।

गुहिल वंश के बाप्पा रावल के मामा चित्तौड़ के राजा मान मौर्य थे। चित्तौड की स्थापना चित्रांगद मौर्य ने की थी। कुमारपाल प्रबन्ध में 36 क्षत्रिय वंशो की सूची में मौर्य वंश का भी नाम है गुजरात के जैन कवि ने चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी लिखा था 7 वी सदी में।।

मौर्यो ने पुरे भारत और मध्य एशिया तक पर राज किया।दूसरे वंशो के राज्य उनके सामने बहुत छोटे हैं कोई 100 गांव की स्टेट कोई 500 गांव की स्टेट वो सब मशहूर हो गए। और कई लाखो गांव कस्बो देशों के मौर्य सम्राट जो सीधे राम के वंशज हैं उन्हें बिना ढंग से अध्यनन करके शूद्र बताया जाए तो बड़े शर्म की बात है।।

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चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन-----

चन्द्रगुप्त मोरिय के पिता पिप्लिवंन के सरदार थे जो मगध के शूद्र राजा नन्द के हमले में मारे गये। ब्राह्मण चाणक्य का नन्द राजा ने अपमान किया जिसके बाद चाणक्य ने देश को शूद्र राजा के चंगुल से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया। एक दिन चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को देखा तो उसके भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान गया। उसने च्न्द्र्गुप्र के वंश का पता कर उसकी माँ से शिक्षा देने के लिए चन्द्रगुप्त को अपने साथ लिया। फिर वो उसे तक्षिला ले गया जहाँ चन्द्रगुप्त को शिक्षा दी गयी।

उसी समय यूनानी राजा सिकन्दर ने भारत पर हमला किया। चन्द्रगुप्त और चानक्य ने पर्वतीय राजा पर्वतक से मिलकर नन्द राजा पर हमला कर उसे मारकर देश को शूद्रो के चंगुल से मुक्ति दिलाई। साथ ही साथ यूनानी सेना को भी मार भगाया। उसके बाद बिन्दुसार और अशोक राजा हुए। सम्राट अशोक बौध बन गया। जिसके कारण द्वेषवश ब्राह्मणों ने उसे शूद्र घोषित कर दिया।

अशोक के कई पुत्र हुए जिनमे महेंद्र कुनाल,जालोंक दशरथ थे जलोक को कश्मीर मिला,दशरथ को मगध की गद्दी मिली। कुणाल के पुत्र सम्प्रति को पश्चिमी और मध्य भारत यानि आज का गुजरात राजस्थान मध्य प्रदेश आदि मिला। सम्प्रति जैन बन गया उसके बनाये मन्दिर आज भी राजस्थान में मिलते हैं, सम्प्रति के के वंशज आज के मेवाड़ उज्जैन इलाके में राज करते रहे।

पश्चिम भारत के मौर्य क्षत्रिय राजपूत माने गये। चित्तौड पर इनके राजाओ के नाम महेश्वर भीम भोज धवल और मान थे।

मौर्य और राजस्थान-------- राजस्थान के कुछ भाग मौर्यों के अधीन या प्रभाव क्षत्र में थे। अशोक का बैराठ का शिलालेख तथा उसके उत्तराधिकारी कुणाल के पुत्र सम्प्रति द्वारा बनवाये गये मन्दिर मौर्यां के प्रभाव की पुश्टि करते हैं। कुमारपाल प्रबन्ध तथा अन्य जैन ग्रंथां से अनुमानित है कि चित्तौड़ का किला व चित्रांग तालाब मौर्य राजा चित्रांग का बनवाया हुआ है। चित्तौड़ से कुछ दूर मानसरोवर नामक तालाब पर राज मान का, जो मौर्यवशी माना जाता है, वि. सं. 770 का शिलालेख कर्नल टॉड को मिला, जिसमें माहेश्वर, भीम, भोज और मान ये चार नाम क्रमशः दिये हैं। कोटा के निकट कणसवा (कसुंआ) के शिवालय से 795 वि. सं. का शिलालेख मिला है, जिसमें मौर्यवंशी राजा धवल का नाम है। इन प्रमाणां से मौर्यों का राजस्थान में अधिकार और प्रभाव स्पष्ट हाता है। चित्तौड़ के ही एक और मौर्य शासक धरणीवराह का भी नाम मिलता है

शेखावत गहलौत राठौड़ से पहले शेखावाटी क्षेत्र और मेवाड़ पर मौर्यो की सत्ता थी।शेखावाटी से मौर्यो ने यौधेय जोहिया राजपूतों को हटाकर जांगल देश की ओर विस्थापित कर दिया था। पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के सामन्तों में भीम मौर्य और सारण मौर्य मालंदराय मौर्य और मुकुन्दराय मौर्य का भी नाम आता है।

ये मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र सम्प्रति के वंशज थे।मौर्य वंश का ऋषि गोत्र भी गौतम है।

गहलौत वंशी बाप्पा रावल के मामा चित्तौड के मान मौर्य थे, बाप्पा रावल ने मान मौर्य से चित्तौड का किला जीत लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया।

इसके बाद मौर्यों की एक शाखा दक्षिण भारत चली गयी और मराठा राजपूतो में मिल गयी जिन्हें आज मोरे मराठा कहा जाता है वहां इनके कई राज्य थे। आज भी मराठो में मोरे वंश उच्च कुल माना जाता है।

खानदेश में मौर्यों का एक लेख मिला है...जो ११ वी शताब्दी का है।जिसमे उल्लेख है के ये मौर्य काठियावाड से यहाँ आये....! एपिग्रफिया इंडिका,वॉल्यूम २,पृष्ठ क्रमांक २२१....सदर लेख वाघली ग्राम,चालीसगांव तहसील से मिला है....

एक शाखा उड़ीसा चली गयी ।वहां के राजा धरणीवराह के वंशज रंक उदावाराह के प्राचीन लेख में उन्होंने सातवी सदी में चित्तौड या चित्रकूट से आना लिखा है।

कुछ मोरी या मौर्य वंशी राजपूत आज भी आगरा मथुरा निमाड़ मालवा उज्जैन में मिलते हैं। इनका गोत्र गौतम है। बुद्ध का गौत्र भी गौतम था जो इस बात का प्रमाण है कि मौर्य और गौतम वंश एक ही वंश की दो शाखाएँ हैं,

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मौर्य और परमार वंश का सम्बन्ध-----

13 वी सदी में मेरुतुंग ने स्थिरावली की रचना की थी जिसमे उज्जैन के सम्राट गंधर्वसेन को जो विक्रमादित्य परमार के पिता थे उन्हें मौर्य सम्राट सम्प्रति का पौत्र लिखा था। जिन चित्तौड़ के मौर्यो को भाट ग्रंथो में मोरी लिखा है वहां मोरी को परमार की शाखा लिख दिया।जबकि परमार नाम बहुत बाद में आया।उन्ही को समकालीन विद्वान रघुवंशी मौर्य लिखते है। उज्जैन अवन्ति मरुभूमि तक सम्प्रति का पुरे मालवा और पश्चिम भारत पर राज था जो उसके हिस्से में आया था।इसकी राजधानी उज्जैन थी।इसी उज्जैन में स्थिरावली के अनुसार सम्प्रति मौर्य के पौत्र के पुत्र विक्रमादित्य ने राज किया जिन्हें भाट ग्रंथो में परमार लिखा गया।

परमार राजपूतो की उत्पत्ति अग्नि वंश से मानी जाती है परन्तु अग्नि से किसी की उत्पत्ति नही होती है. राजस्थान के जाने माने विद्वान सुरजन सिंंह झाझड, हरनाम सिंह चौहान के अनुसार परमार राजवंश मौर्य वंश की शाखा है.इतिहासकार गौरीशंकर ओझा के अनुसार सम्राट अशोक के बाद मौर्यो की एक शाखा का मालवा पर शासन था. भविष्य पुराण मे भी इसा पुर्व मे मालवा पर परमारो के शासन का उल्लेख मिलता है.

"राजपूत शाखाओ का इतिहास " पेज # २७० पर देवी सिंंह मंडावा महत्वपूर्न सूचना देते है. लिखते है कि विक्रमादित्य के समय शको ने भारत पर हमला किया तथा विक्रमादित्य न उन्हेे भारत से बाहर खदेडा. विक्रमादित्य के वंशजो ने ई ५५० तक मालवा पर शासन किया. इन्ही की एक शाखा ने ६ वी सदी मे गढवाल चला गया और वहा परमार वंश की स्थापना की.

अब सवाल उठता है कि विक्रमादित्य किस वंश से थे? कर्नल जेम्स टाड के अनुसार भारत के इतिहास मे दो विक्रमादित्य आते है. पहला मौर्यवंशी विक्रमादित्य जिन्होने विक्रम संवत की सुरुआत की. दूसरा गुप्त वंश का चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जो एक उपाधि थी..

मिस्टर मार्सेन ने "ग्राम आफ सर्वे "मे लिखा है कि शत्धनुष मौर्य के वंश मे महेन्द्रादित्य का जन्म हुआ और उसी का पुत्र विक्रमादित्य हुआ..

कर्नल जेम्स टाड पेज # ५४ पर लिखते है कि मौर्य तक्षक वंशी थे जो बाद मे परमार राजपूत कहलाये. अत: स्पष्ट हो जाता है कि परमार वंश मौर्य वंश की ही शाखा है.

कालीदास , अमरिसंह , वराहमिहिर,धनवंतरी, वररुिच , शकु आदि नवरत्न विक्रमाद्वित्य के दरबार को सुशोभित करते थे तथा इसी राजवंश मे जगत प्रिसद्ध राजा भोज का जन्म हुआ.

इसी आधार पर मौर्य और परमार को एक मानने के प्रमाण हैं। अधिकतर पश्चिम भारत के मौर्य परमार कहलाने लगे और छोटी सी शाखा बाद तक मोरी मौर्य राजपूत कहलाई जाती रही और भाट इन्हें परमार की शाखा कहने लगे जबकि वास्तव में उल्टा हो सकता है। कर्नल जेम्स टॉड ने भी चन्द्रगुप्त मौर्य को परमार वंश से लिखा है।

चन्द्रगुप्त के समय के सभी जैन और बौध धर्म मौर्यों को शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय प्रमाणित करते है ।चित्तौड के मौर्य राजपूतो को पांचवी सदी में सूर्यवंशी ही माना जाता था किन्तु कुछ ब्राह्मणों ने द्वेषवष बौध धर्म ग्रहण करने के कारण इन्हें शूद्र घोषित कर दिया, किन्तु पश्चिम भारत के मौर्य पुन वैदिक धर्म में वापस आ जाने से क्षत्रिय राजपूत ही कहलाये।।

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मौर्य वंश आज राजपूतो में कहाँ गायब हो गया??????

मौर्य वंश अशोक के पोत्रो के समय दो भागो में बंट गया। पश्चिमी भाग सम्प्रति मौर्य के हिस्से में आया।वो जैन बन गया था।उसकी राजधानी उज्जैन थी।उसके वंशजो ने लम्बे समय तक मालवा और राजस्थान में राज किया।

पूर्वी भाग के राजा बौद्ध बने रहे और पुष्यमित्र शुंग द्वारा मारे गए।वे बाद तक बौद्ध बने रहने के कारण शूद्र बन गए और पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार में मौर्य मुराव मुराई जाति शूद्र है।

पश्चिमी भारत के मौर्य बाद में आबू पर्वत पर यज्ञ द्वारा पुन वैदिक धर्म में वापस आ गए और परमार राजपूतो के नाम से प्रसिद्ध हुए।

इनकी चित्तौड़ शाखा मौर्य ही कहलाती रही। चित्तौड़ शाखा के ही वंश भाई सिंध के भी राजा थे।उनका नाम साहसी राय मौर्य था जिन्हें मारकर चच ब्राह्मण ने सिंध पर राज किया तब उनके रिश्ते के भाई चित्तौड़ से वहां चच ब्राह्मण से लड़ने गए थे जिसका जिक्र 8 वी सदी में लिखी चचनामा में मिलता है।

जब बापा रावल ने मान मोरी को हराकर चित्तौड़ से निकाल दिया तो यहाँ के मौर्य मोरी राजपूत इधर उधर बिखर गए----

1-एक शाखा रंक उदवराह के नेतृत्व में उड़ीसा चली गयी।वहां के अधिकतर सूर्यवँशी आज उसी के वंशज होने का दावा करते हैं।

2-एक शाखा हिमाचल प्रदेश गयी और चम्बा में भरमोर रियासत की स्थापना की।इनके लेख में इन्हे 5 वी सदी के पास चित्तौड़ से आना लिखा है।ये स्टेट आज भी मौजूद है और इनके राजा को सूर्यवँशी कहा जाता है।इस शाखा के राजपूत अब चाम्बियाल राजपूत कहलाते हैं https://en.m.wikipedia.org/wiki/Chambial

3-एक शाखा मालवा की और पहले से थी और आज भी निमाड़ उज्जैन और कई जिलो में शुद्ध मौर्य राजपूत मिलते हैं। एक शाखा आगरा के पास 24 गाँव में है और शुद्ध मोरी राजपूत कहलाती है। इस राठौर राजपूत ठिकाने की लड़की मौर्य राजपूत ठिकाने में ब्याही है http://www.indianrajputs.com/view/maswadia

4-एक शाखा महाराष्ट्र चली गयी।उनमे खानदेश में आज भी मौर्य राजपूत हैं जबकि कुछ मराठा बन गए और मोरे मराठा कहलाते हैं।

5-एक शाखा गुजरात चली गयी और जमीन राज्य न रहने से कम दर्जे के राजपूतो में मिल गयी और कार्डिया कहलाती है।

वास्तव में मौर्य अथवा मोरी वंश एक शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय राजपूत वंश है जो आज भी राजपूत समाज का अभिन्न अंग है। "============================ मौर्य मोरी वंश के गोत्र प्रवर आदि--- गोत्र--गौतम और कश्यप प्रवर तीन--गौतम वशिष्ठ ब्राह्स्पत्य वेद--यजुर्वेद शाखा--वाजसनेयी कुलदेव--खांडेराव गद्दी--कश्मीर,पाटिलिपुत्र, चित्तौड़, उज्जैनी,भरमौर, सिंध, निवास--आगरा, मथुरा, फतेहपुर सीकरी, उज्जैन, निमाड़, हरदा,इंदौर, खानदेश महाराष्ट्र ,तेलंगाना, गुजरात(karadiya में),हिमाचल प्रदेश,मेवाड़ सांस्कृतिक रिवाज--शुभ कार्यो में मोर पंख रखते हैं।

5) जयशंकर प्रसाद कृत "चन्द्रगुप्त" 

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