नारद मुनि और भगवान विष्णु की कहानी

एक बार की बात है, वीणा बजाते हुए नारद मुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे। नारायण नारायण !! नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमानजी पहरा दे रहे है।

हनुमानजी ने पूछा- नारद मुनि! कहाँ जा रहे हो ?

नारदजी बोले- मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है ?

हनुमानजी बोले- पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है, प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे हैं।

नारदजी- अच्छा ? क्या लिखा पढ़ी कर रहे है ?

हनुमानजी बोले- मुझे पता नहीं मुनिवर आप खुद ही देख आना।

नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है।

नारद जी बोले- प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए।

प्रभु बोले- नहीं नारद, मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता।

नारद जी- अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है? ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो ?

प्रभु बोले- तुम क्या करोगे देखकर, जाने दो।

नारद जी बोले- नहीं प्रभु बताइये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते हैं ?

प्रभु बोले- नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजिरी लगाता हूँ।

नारद जी- अच्छा प्रभु जरा बताइये तो मेरा नाम कहाँ पर है ? नारदमुनि ने बही खाते को खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था। नारदजी को गर्व हो गया कि देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है। पर नारदजी ने देखा कि हनुमानजी का नाम उस बही खाते में कहीं नही है ? नारदजी सोचने लगे कि हनुमानजी तो प्रभु श्रीरामजी के खास भक्त है फिर उनका नाम, इस बही खाते में क्यों नही है ? क्या प्रभु उनको भूल गए है ? 

नारद मुनि आये हनुमान जी के पास बोले- हनुमान! प्रभु के बही खाते में उन सब भक्तों के नाम हैं जो नित्य प्रभु को भजते हैं पर आप का नाम उस में कहीं नहीं है ?

हनुमानजी ने कहा- मुनिवर! होगा, आप ने शायद ठीक से नहीं देखा होगा ?

नारदजी बोले- नहीं नहीं मैंने ध्यान से देखा पर आप का नाम कहीं नही था।

हनुमानजी ने कहा- अच्छा कोई बात नहीं। शायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा जो मेरा नाम उस बही खाते में लिखा जाये। पर नारदजी प्रभु एक अन्य दैनंदिनी भी रखते है उसमें भी वे नित्य कुछ लिखते हैं।

नारदजी बोले- अच्छा ?

हनुमानजी ने कहा- हाँ!

नारदमुनि फिर गये प्रभु श्रीराम के पास और बोले प्रभु! सुना है कि आप अपनी अलग से दैनंदिनी भी रखते है! उसमें आप क्या लिखते हैं ?

प्रभु श्रीराम बोले- हाँ! पर वो तुम्हारे काम की नहीं है।

नारदजी- प्रभु! बताइये, मैं देखना चाहता हूँ कि आप उसमें क्या लिखते हैं ?

प्रभु मुस्कुराये और बोले- मुनिवर मैं इसमें उन भक्तों के नाम लिखता हूँ जिनको मैं नित्य भजता हूँ।

नारदजी ने दैनंदिनी खोल कर देखा तो उसमें सबसे ऊपर हनुमानजी का नाम था। ये देख कर नारदजी का अभिमान टूट गया।

कहने का तात्पर्य यह है कि जो भगवान को सिर्फ जिह्वा से भजते हैं उनको प्रभु अपना भक्त मानते हैं, और जो हृदय से भजते है उन भक्तों के वे स्वयं भक्त हो जाते हैं। ऐसे भक्तों को प्रभु अपनी हृदय रूपी विशेष सूची में रखते हैं।

      ।। श्रीमन्नारायण नारायण हरी हरी ।।

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